बुधवार, 17 अक्तूबर 2018

मैकिसम गोर्की और उनकी कालजयी रचना “माँ”



-अर्पणा दीप्ति 


वर्ष 2018 सोवियत साहित्य के पितामह एवं महान लेखक मैकिसम गोर्की के जन्म के 150 सौ वर्ष पूरे होने के कारण विशिष्ट है साथ ही साथ ही उनकी कालजयी रचना “माँ” उपन्यास के 112 वर्ष पुरे होने के वजह से भी उल्लेखनीय है | मुमताज हुसैन ने अपने एक साहित्यक लेख में लिखा “शेक्सपियर के बाद दुनिया के अधिकाँश लोग गोर्की का ही नाम लेंगे |”
प्रसिद्ध लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास ने बड़े ही दिलचस्प तरीके से गोर्की की लोकप्रियता और पाठकों पर उनके प्रभाव को व्यक्त किया | 1968 में सोवेत्स्काया कुल्तुरा (सोवियत सांस्कृतिक) पत्र में छपे लेख में लिखा था –“ दुनिया के किन तीन लेखकों ने आपको सबसे अधिक  प्रभावित किया ?ऐसा प्रश्न पूछने पर आपको उत्तर मिलेगा-
क.   मैकिसम गोर्की, थामस मन, और बर्नाड शा |
ख.  लाय टालस्टाय, हेबरट वेल्स, और मैकिसम गोर्की |
ग.   गोल्स वर्दी, फ्रांस काफ्का और मैकिसम गोर्की | 


यानि की हर तीन नाम में से एक नाम अवश्य मैकिसम गोर्की का होगा | स्वयं प्रेमचन्द ने गोर्की के निधन पर अपनी पत्नी से कहा –“जब घर घर शिक्षा का प्रसार हो जायगा तो क्या गोर्की का प्रभाव घर-घर न हो जाएगा | वे भी तुलसी सुर की तरह घर-घर न पूजे जायेंगे ?
          अब बात गोर्की की कालजयी रचना “माँ” की |  “माँ” महज एक उपन्यास नहीं बल्कि सोवियत साहित्य की बुनियाद का पहला पत्थर है | 1906 में गोर्की द्वारा लिखा गया इस उपन्यास में क्रांतिकारी मानवता की बहुआयामी झलक देखने को मिलता है | यह पुरी दुनिया की समूची मेहनतकश और मुक्तिकामी जनता के लिए लिखा गया एक अत्यंत महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसने असंख्य लोगों की चेतना को झकझोरा था | इसे पढने के बाद बहुत से लोग प्रगतिशील एवं वामपंथी आन्दोलन से जुड़े थे | इस उपन्यास का केन्द्रीय विषय 1905 से पूर्व सोवियत संघ मजदुर वर्ग का जीवन, निरंकुश राजतंत्र, और पूंजीपति वर्ग के खिलाफ उनका संघर्ष, उनकी क्रांतिकारी चेतना में वृद्धि तथा इस क्रांति से आगे आए पथ-प्रदर्शक एवं क्रांतिकारी नेताओं को चित्रित किया गया है |
         उपन्यास की कथावस्तु सच्ची घटनाओं के तानेबाने से बुना गया है | इस उपन्यास को रूस के परम्परागत साहित्य और समाजवादी आन्दोलन से प्रेरित नव साहित्य का सेतु कहा जा सकता है |
     उपन्यास का नायक पावेल रूसी क्रांतिकारी साहित्य का एक लोकप्रिय नाम है | इस उपन्यास से प्रभावित होकर दुनिया के कई देशों के माता-पिता ने अपने बच्चों का नाम पावेल रखा | पावेल के माँ पेलागेया निलोवाना जो कि उपन्यास की केन्द्रीय पात्र है पुलिस के हत्थे चड्ढ जाती है उसके हाथ में वह सूटकेस है जिसमे पावेल के भाषण
तथा पर्चे हैं | पुलिस के अत्याचार से वह टूटती नहीं है कहती है “बेवकूफों तुम जितना अत्याचार करोगे हमारी नफरत उतनी बढ़ेगी |”
    मां कोई काल्पनिक उपन्यास नहीं है गोर्की ने इसमें क्रांतिपूर्व रूस के झंझावती दौर के जीते-जागते पात्रों से सजाया है | उनके उपन्यास के नायक पावेल महान अक्टूबर समाजवादी क्रान्ति के सैनिक प्योत्र जालमोव थे और पेलागेया निलोवना उनकी माँ आन्ना किरील्लोवना थीं | प्योत्र बोल्शेविक पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता थे | जारशाही अदालत ने उन्हें साइबेरिया में निर्वासन की सजा दी थी | गोर्की की मदद से प्योत्र साइबेरिया से भाग निकले थे | 1905 में क्रान्ति के समय मास्को के हथियारबंद मजदूर दस्तों के संगठन में भाग लिया | जानलेवा बीमारी  तथा डाक्टरों के मनाही के बावजूद प्योत्र क्रांतिकारी संगठन के लिए काम करते रहे | उन्होंने अपने क्रांतिकारी जीवन तथा गोर्की से मुलाकातों के संस्मरण लिखे साथ ही गोर्की के ‘माँ’ उपन्यास के पाठकों से पत्र व्यवहार भी करते रहे |   
    प्योत्र जालोमोव बहुत साल तक ज़िंदा रहे 1955 में 78 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई | उनकी माँ आन्ना किरील्लोवना ने भी काफी लंबी उम्र पाई | उनके बारे में गोर्की ने लिखा है-सोमोर्व में पहली मई के जुलूस के लिए सजा पानेवाले प्योत्र जालोमोव की मां का ही रूप पेलागेया निलोवना थी | वे गुप्त संगठन में काम करती थी और भिक्षुणी के भेष में साहित्य ले जाती थी | आन्ना किरील्लोवना का जन्म 1849 में एक मोची के घर में हुआ था | उनकी जिन्दगी काफी कठिन रही | पति की मृत्यु के बाद तो ख़ास तौर पर उन्हें बहुत बुरा वक्त देखना पड़ा | उनके सात बच्चे थे वे ‘विधवा घर’ के अँधेरे और ठंढे तहखाने में अपने बच्चों के साथ रहती थीं | माँ की कर्मठता और श्रमप्रियता ने ही परिवार और बच्चों को बचाया | बच्चे धीरे-धीरे बड़े होते गए , कुछ काम करने लगे कुछ पढ़ते रहे | प्योत्र क्रांतिकारी मंडल में शामिल हो गए | जल्द ही पूरा जालोमोव परिवार क्रांतिकारी आन्दोलन में हिस्सा लेने लगा |
यह सच है की रूस के ‘गोर्की’, भारत के ‘प्रेमचन्द’ तथा चीन के ‘लू शुन’ तीनों लेखकों ने ‘कला कला के लिए’ (Art for Art) के सिद्धांत को अस्वीकार किया | गोर्की लेखन कार्य को लेखक का निजी मामला मानने को हरगिज तैयार नहीं थे | यही कारण है कि केवल शब्दों में मानवता की दुहाई देनेवाले लोगों के ढोंग का भी उन्होंने पुरजोर विरोध किया | उन्होंने साफ और सीधे शब्दों में पूछा “ किसके साथ हैं आप कला के धनी ?”  “आम मेहनतकश लोगों के साथ जो जीवन के नए रूपों का  निर्माण करने के पक्ष में हैं, या उन लोगों के पक्ष में जो गैर जिम्मेदार लुटेरों की जात जो ऊपर से नीचे तक सड़ गई हैं |” ठीक उसी तरह जैसे मुक्तिबोध पूछते थे “पार्टनर तुम किस और हो ? पार्टनर तुम्हारी पालटिक्स क्या है ?”        
    गोर्की के इसी आह्वान ने मजदुर बस्ती की धुएं और बदबूदार हवा में हर रोज फैक्टरी के भोंपू का काँपता हुआ कर्कश स्वर में भी छोटे-छोटे मटमैले घरों से उदास लोग सहमे हुए तिलचट्टे की तरह बाहर आ जाते हैं .....और फिर पुतलों की भाँती चल पड़ते हैं | गंदे चेहरे पर कालिख पुते और फिर मशीन के तेल से दुर्गन्ध छोड़ते हुए शरीर |  

क्रमश:   





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