गुरुवार, 6 दिसंबर 2018

स्मृति शेष



आख़िरी मुलाक़ात 3 सितम्बर 2018 सुबह 9 बजे








माँ जैसे आपको पता था, आप इस धरती पर अधिक दिन नहीं रहेंगी इसलिए आप बिल्कुल छोटी बच्ची बन गई थी | जैसे ही हमें पता चला आप डाक्टर के निगरानी में हैं अनुराग ने कहा माँ-पापा आप पटना फ्लाईट से चले जाइए | अस्पताल में मुझे और बेटा को देखकर हाथ पकड़ कर आप बहुत रोई थीं  | मैंने कहा आप ठीक हो जाइयगा अब हम आ गए हैं , और सचमुच आपका स्वास्थ्य सुधरता गया, आप घर आ गई | एक सप्ताह बाद आपने मुझसे कहा अब मैं ठीक हूँ तुम लोग जाओ | अनुराग को खाने-पीने में कठिनाई हो रहा होगा | 3 सितम्बर शाम पांच बजकर चालीस मिनट पर  पटना से हैदराबाद के लिए फ्लाईट था | आपने बाबूजी से कहा दुलहिन और मणि विमान से चला जायगा और डेढ़ घंटे में पहुंच जाएगा |  हाँ साथ ही आप ने ये भी कहा था  मुझे चाय पिलाओ कुछ अच्छा खिला दो ? साग बनाओ और एक रोटी चालाकी नहीं करना देखो तुम मुझे ठग कर दो रोटी खिलाती हो मैं सब जानती हूँ ! आपने बड़े प्रेम से चेताया था मुझे?  बड़े ही चाव से आपने भोजन की थाल को देखा फिर रोटी का उल्ट-पलट कर मुआयना किया संतुष्ट होने के बाद बेटा (मेरे पति) से कहा खाना अच्छा बनाती है बिल्कुल मेरे जैसा | हँसते हुए बेटा से कहा बहुत सीधी-सपाटी है बिलकुल मेरे जैसी सम्भाल कर रखना इसे कोई तकलीफ न हो| बेटा ने कहा न दीदी (माँ) बहुत जिद्दी है तुझे नहीं न पता | मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए आपने मुझे आशीषा बेटे के तरफ देखकर हंसने लगी |  रोटी खाने के बाद बेटा के साथ थाल में चावल खाने की इच्छा जाहिर की थी, मुझसे कहा एक निवाला खिला दो | जा रही हो मेरा मालिश कौन करेगा करके जाओ ? अच्छे से मुझे नहला दो गर्मी बहुत है | सिंदूर लगा दो आज साड़ी भी पहना दो |  हालांकि ससुराल से मेरा आना-जाना न के बराबर था | आजीविका तथा अध्ययन-अध्यापन में व्यस्त रही | पड़ोसियों ने आप से कहा आपकी बेटी बहुत सेवा करती है | शायद वे मुझे जानते नहीं थे ! उनसे मुखातिब होते हुए आपने कहा- नहीं ये मेरी मंझली बहु है परिवार तथा गाँव में सबसे पढ़ी-लिखी मणि की दुलहिन है |  मिथिला से है, मधुबनी की मेरा पोता मेरे बेटा से भी लम्बा है परिवार में सबसे बड़ा | आपके मुखमंडल पर एक अलग ही आभा, एक तेज, एक ऐसा संतुष्टि जिसे आज से पहले मैंने कभी नहीं देखा | सचमुच मां अप्रतिम सुंदर दिखी उस दिन आप | अपने पुराने अंदाज में दरवाजा पर कुर्सी पर बैठ गई आप मानो यह कहना चाह रही थी जाना है तो जाओ मैं तुम्हारे बिना भी रह लूंगी | लेकिन आप ह्रदय से रो रही थी मैं जानती थी | आप मेरे कमरे में आई और कहा तुम्हें बहुत काम करना पड़ रहा है, एक सुबह से तुम काम कर रही हो कुछ खा लो और हाँ काजु भुन दो ठीक वैसे ही काली मिर्च डालकर जैसे अनुराग के लिए बनाती हो ? और हां सुनो ! खाना बनाने वाली को सिखा दो | मैं हंस पड़ी थी;- मैंने कहा आप खत्म होने से चार दिन पहले मुझे बता दीजियेगा मैं हैदराबाद से आपको कुरियर कर दूंगी | आप रो पड़ी थी आँख में आंसू लेकर कहा कहाँ सुनते हैं तुम्हारे ससुर आजकल ! कहती हूँ- काजु-बादाम मंगवा दीजिये खाने से शरीर में ताकत होगा | कहते हैं भात-रोटी खाइए उससे ताकत होगा | काजू-बादाम आप नहीं पचा पाएंगी और महंगा भी मिलता है | मैंने इनसे  कहा इन्होंने बगल के दुकान से एक किलो काजू एक किलो बादाम तथा एक आधा किलो फूल मखान मंगवा कर रख दिया | मेरे कमरे में एक जाली का अलमारी रखा था मानो वह अलमारी न हो आपकी तिजोरी हो उसकी चाभी हमेशा आपके पास रहती थी  पहली बार आपने वह चाभी मुझे दिया और कहा ठीक है ये सब इस में बंद कर दो, और चाभी बाबूजी को दे दो |  हमलोगों के हैदराबाद आने के ठीक एक सप्ताह बाद आपने बेटा से फोन पर सम्वाद करते हुए अपने स्वास्थ्य पुन: बिगड़ने की सूचना दी | अन्न से शत्रुता कर लिया आपने, नींद के पथ पर कांटे बो दिए आपने, अंतिम समय में पारिवारिक अवसाद  से व्यथित हो रहीं थीं | व्यथा के फफोले आपकी आत्मा पर स्पष्ट दिख रहा था | पृथ्वी अपने धूरी पर घूम रही थी, सूरज आसमान में चक्कर काट रहा था | लेकिन आपके तुणीर से जीवन रिक्त हो रहा था | महाप्रयाण के लिए एकदम तत्पर थीं आप | 22 सितम्बर की रात का  अपना रंग था , काला घना |  आप तो जिंदादिल थीं फिर आपके जीवन में अवसाद की ऐसी रात क्यों आई जिसकी कोई सुबह नहीं थी | रोशनी पर ग्रहण लग चुका था | 23 सितम्बर की भोर का उजियारा मौत के साए में सिसक रहा था आप सारे बन्धनों से मुक्त हो चुकीं थीं | हम दोनों रोते रहे चुप कराने का किस्सा खत्म हो चुका था | कुछ नहीं बचा था सिसकियों के सिवा .........   




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