मेरे
लिए यात्रा करना रोमांच से कुछ कम नहीं | बचपन से पापा के साथ यात्राओं का सुदीर्घ
अनुभव रहा है | ख़ासतौर पर बात जब अपनी माटी की हो | रोजीरोटी के चक्कर में घर से बेघर
हुई लेकिन मन तो अपनी माटी से जुड़ा है | मन का एक कोना अभी भी कहता है “रहना नहीं
देस बिराना” लेकिन क्या किया जाए यह जीवन है जीने के लिए समझौता जरूरी है | मैं भी
अरसे से समझौतावादी हो चुकी हूँ |
अब बात
यात्रावृतांत की-इसबार सफर के लिए मैंने रेलगाड़ी को चुना | इसके पीछे दो मुख्य
कारण है एक आपको भिन्न-भिन्न संस्कृति अलग-अलग व्यवसाय के लोग मिलेंगे, दूसरा
प्रकृति के विहंगम छटा का सुलोचन दर्शन होगा | हमारी यात्रा 5 मार्च रात के दस बजे
सिकन्दराबाद दरभंगा एक्सप्रेस से शुरू हुई |एक बात तो तय है भारतीय रेल आज भी तनाव
विमुक्त बड़े ही आराम से चलती है | रात के दस के बजाए ग्यारह बजे ट्रेन सिकन्दराबाद
से रवाना हुई | ट्रेन में मुट्ठी भर यात्री सुरक्षा कारणों से मन आशंकित बीच-बीच
में जब भी नींद खुली हमारी गाड़ी किसी न किसी स्टेशन पर आराम फरमा रही थी सुबह पांच
बजे कोच के अटेंडेंट से पता चला की हम अपने निर्धारित समय से पांच घंटे लेट हो
चुके है | भारतीय रेल तेरी जय हम बड़े ही आराम से पहुँचने वाले हैं यह तय था |
हमारी सामने वाली बर्थ यात्री विहीन बगल के कम्पार्टमेंट से एक मराठी सम्भ्रांत
बुजुर्ग महिला बीच-बीच में आकर गप्पे मार लेती थीं | गप्प क्या कहिये भारतीय रेल
को कोस लेतीं थी मैं भी उनके हाँ में हाँ मिला देती थी | ट्रेन में कैटरिंग की
सुविधा नहीं थी चाय के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा | खैर जैसे तैसे चाय
के नाम पर गरम पानी और चीनी के घोल जैसी चाय से संतुष्ट होना पड़ा |
इन्तजार की
घड़ियाँ खत्म हुई 6 मार्च शाम पांच बजे भिलाई में टीवी टुडे नेटवर्क के भूतपूर्व
एंकर पूण्य प्रसून वाजपेयी अपनी पत्नी बिटिया तथा रिश्तेदारों के साथ हमारे
सहयात्री बने | उस समय हम अपने मोबाइल में आजतक में लाइव डिबेट देख रहे थे | खैर
जब हमारी डिबेट समाप्त हुई वे लोग भी अपने बर्थ के साथ स्थायमान हो चुके थे | उनके
एक रिश्तेदार थे जिन्हें बच्चे भी मौसाजी कह रहे थे और बड़े भी मौसाजी रिश्ता हमें
कुछ समझ में नही आया | मौसाजी पिताजी यानी कि ससुरजी के पास आकर बैठ गए बड़े ही आदर
भाव से पिताजी के पाँव छुआ | और देश की मौजूदा राजनीति पर चर्चा करने लगे | चर्चा
का विषय था air strike तथा आगामी लोक सभा चुनाव,पिताजी तो पुरे मोदी के रंग में
रंगे थे | वैसे हम बिहारियों की यह खासियत है देश की मौजूदा राजनीति पर चर्चा करते
हुए आपको पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी वर्ग से लेकर रिक्शावाला एवं पानवाला भी मिल जायगा |
बातचीत का सिलसिला रात के ग्यारह बजे तक चलता रहा | श्रीमती वाजपेयी ने पूछा ये
आपके ससुर हैं हमने कहा हाँ | सुबह छ: बजे ट्रेन रांची के हटिया स्टेशन पहुंची |
सहयात्रियों का गंतव्य आ चुका था उन्हें सेमीनार में भाग लेना था | हम सबने एक
दुसरे को हाथ जोड़ा | मौसाजी ने बड़े ही श्रद्धा से पुन: पिताजी के पाँव छुए | ये हम
बिहारियों की संस्कृति है हम बड़े-बूढों का आशीर्वाद पाँव छुकर हमेशा लेते हैं |
पूण्य प्रसून जी जब आजतक नेटवर्क में थे घोर मोदी विरोधी थे शायद यही वजह रही उनके
नौकरी छोड़ने की | कल की चर्चा में बड़े ही खामोशी के साथ वे पिताजी का मोदी प्रेम
सुन रहे थे | चलते-चलते उन्होंने एक मास्टर स्ट्रोक दे मारा पिताजी से कहा अभी जो
हमने एक दुसरे का हाथ जोड़कर अभिवादन किया यह राष्ट्रभक्ति है कल की परिचर्चा
व्यक्तिभक्ति थी | बड़ा ही अच्छा और यादगार सफर अच्छे लोगों से मुलाक़ात | हम भी सात
घंटे बिलम्ब अपने महबूब शहर यानी कि दरभंगा पहुंच गए | आगे का वृतांत अगले आलेख
में |
अर्पणा
दीप्ति
Nice post.
जवाब देंहटाएंKya Whatsapp Web try kiya?