आसान नहीं होता
प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना ,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी |
झुकती नहीं वो कभी ,
जब तक रिश्तों मे न हो मजबूरी |
तुम्हारी हर हाँ मे हाँ और ना में ना कहना ,
वो नही जानती !
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं,
झूठ की डोर मे रिश्तों को बांधना ,
वो नहीं जानती स्वाद की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना ,
वो तो जानती है बेबाकी से सच बोल जाना |
फिजूल की बहस में पड़ना
उसकी आदत मे शुमार नहीं ,
लेकिन वो जानती है ,
तर्क के साथ अपनी बात रखना |
वो क्षण-क्षण गहने -कपड़ों की मांग नहीं किया करती
वो तो संवारती है स्वयं को अपने आत्मविश्वास से,
निखारती है अपना व्यक्तित्व मासूमियत भरे मुस्कान से |
तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें टोकती है ;
तो तुम्हारे तकलीफ मे वो तुम्हें संभालती भी है |
उसे घर संभालना बखूबी आता है ;
तो अपने सपनों को पूरा करना भी |
अगर नहीं आता तो किसी के अनर्गल बातों को मान लेना |
पौरुष के आगे वो नतमस्तक नहीं होती ,
झुकती है तो तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे ,
और इस प्रेम के खातिर वो अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है |
हौसला हो निभाने का तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना ,
क्योंकि टूट जाती है वो धोखे से,
छलावे से,पुरुष के अहंकार से |
फिर नहीं जुड़ पाती है किसी प्रेम की खातिर |
(पोलेंड की प्रसिद्ध कवियत्री "डोमिनेर" की कविता का हिन्दी अनुवाद )
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