अदहन;-बिहार के गाँव में भात-दाल जिस बर्तन में बनता है उसे बटुक या बटलोई कहा जाता है | पुराने जमाने में यह पीतल या कांसा का होता था , बाद में मिट्टी या अल्युमिनियम का बटुक प्रचलन में आया | आज भी बिहार के गांवों मे लकड़ी के चूल्हे पर चढ़ाकर इसमे भात-दाल पकाया जाता है | लकड़ी के जलावन के प्रयोग की वजह से पेंदी में कालिख लग जाती है जिसे कारिखा भी कहा जाता है | कारिखा से बचाव के लिए बर्तन की पेंदी में मिट्टी ( चिकनी मिट्टी जिसे गोरिया मिट्टी भी कहा जाता है) का लेबा लगाया जाता है | चिकनी मिट्टी का पिंडी बनाकर घर में पहले से रख लिया जाता है ताकि बाद मे दिक्कत न हो | मिट्टी का लेबा सूखने के बाद बटुक को चूल्हा पर चढ़ाया जाता है | लकड़ी की आग सुलगाई जाती है | चूल्हा से धुआँ निकलने के लिए खपटा या खपडा का उचकून लगाया जाता है | जलावन की लकड़ी जरना कहलाती है, सुखी होने पर यह खन -खन कर जलती है | महरायल जलावन से खाना बनाने में दिक्कत होती है धुआँ अधिक मात्रा मे निकलती है | बटुक या बटलोई में नाप कर अदहन का पानी डाला जाता है | अदहन का पानी जब खूब गरम हो जाए या खौलने लग जाए तब इसमे चावल या दाल डाला जाए ऐसा कहा जाता है | अदहन की एक अलग ही आवाज होती है मानो कोई संगीत हो |घर की स्त्रियाँ अदहन नाद पर फुर्ती से चावल या दाल जो भी धुलकर रखा हो उसे बटुक मे दाल देती हैं इसे चावल या दाल मेराना कहते हैं | मेराने से पहले चावल या दाल के कुछ दाने जलते आग को अर्पित किया जाता है | मेराने से पहले चावल को धोकर उस पानी को गाय भैंस के पीने के लिए रखा जाता है इस पानी को चरधोइन कहा जाता है | मेराने के बाद सम आंच पर चावल को पकाया जाता है | बीच-बीच मे इसे कलछुल से चलाया जाता है ताकि एकरस पके | चावल जब डभकने लगता है तब उसे पसाया जाता है जिसे माड़ निकालना कहते हैं | साफ बर्तन यानि की कठौता या बरगुना में माड़ पसाया जाता है | गरम माड़ पीने या माड़ -भात खाने में जो आनाद मिलता है उसे लिखकर नहीं समझाया जा सकता है | सामान्यतया यह गरीबों का भोजन है परंतु जिसने इसे खाया उसे पता है कि असली अन्नपूर्णा का आशीर्वाद क्या है ? भात पसाने के लिए बटलोई पर काठ की ढकनी डाली जाती है | भात पसाना भी एक कला है, नौसिखिये तो अपना हाथ-पैर ही जला बैठते है | ढकनी को एक साफ सूती कपड़ा से पकड़ कर माड़ पसाया जाता है | यह साफ सूती कपड़ा भतपसौना है | भोजन जब पक जाए तब भात-दाल और तीमन (तरकारी) मिलाकर अग्निदेवता को पहले जीमाया जाता है उसके बाद घर के बाँकी कुटुंब जीमते हैं | जीमने हेतु चौका पुराया जाता है , गोरिया मिट्टी से एक पोतन से लीप कर चौका लगाया जाता है | इस चौके के आसान पर बैठ माँ -दादी बड़े ही मुनहार से खिलाती हैं उसका आनंद अलौकिक है |
अर्पणा दीप्ति
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