सोमवार, 9 सितंबर 2024

निर्मोही कृष्ण (जन्माष्टमी विशेष ) विलंब पोस्ट

 



हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की | कान्हा आ  रहें हैं , माता देवकी पुत्र बिछोह में रो रहीं हैं | पिता वसुदेव यमुना नदी से होकर अपने पुत्र को लेकर जा रहे हैं | सभी प्रतीक्षारत हैं कृष्ण आ रहें हैं | 

यहाँ हमें यह भी याद रखना होगा कि कृष्ण याद रखना नहीं अपितु भूलना सिखाते हैं ,गोकुल को ..  फिर मथुरा को..और अंत में द्वारिका को भी ये सब तो मात्र पड़ाव हैं | कहते रहिए हम आप उन्हें निर्मोही लेकिन जब-जब दिखेगा उनका रत्नजड़ित मुकुट में मोर पंख तब-तब याद आएगा ब्रज का वनप्रान्त  जो द्वारिकेश के यशस्वी भाल पर विराजमान है |कृष्ण बांधना नहीं छोड़ना सिखाते है | वह पलट कर नहीं आते न यशोदा और न राधा के पास , लेकिन जब-जब देखेंगे उस छलिया को नहीं दिखेगा प्रचंड  रिपुरारि सुदर्शन चक्र , बस गूँजेगी मुरली की मीठी तान जो सदा उनके संग रही |


कृष्ण सिखाते हैं लेना माखन .. गोपिकाओं का मन .. राधा का सर्वस्व .. मथुरा तो कभी द्वारिका |


पर अंत में छोड़ देते हैं सब, यहीं  रह जाने के लिए अंत समय में निर्बाध एकांत में मार जाने को |

कृष्ण छोड़ते हैं रण .. कहलाते हैं रणछोड़ पर नहीं छोड़ते कर्ण  की अनकही पीड़ा को.. भीष्म के कठोर तप को .. और गांधारी के शाप को |

सब जानते हैं कृष्ण करते हैं लीला , रचाते हैं रास , छुपाते हैं स्नान करती गोपिकाओं के वस्त्र |

पर कितने लोग जानते हैं उन एक हजार विवाहों के पीछे की लीला का सच |

कृष्ण नहीं है सत्यव्रत ---अर्धसत्य --- मिथ्यावचन बोलने के लिए उकसाते हैं ,लेकिन कब कहा उन्होंने अपने आप को सत्यवादी |

वे सत्य के नहीं मानव कल्याण के साथ रहे  जो किसी भी सत्य या धर्मवाक्य से ऊपर हैं | वे जीवन के व्यवहारिक सत्य के साथ रहते हैं  फिर चाहे वो द्रोपदी का हो या बर्बरीक का |

वस्तुत: कृष्ण याद को भूलना और पाए को छोड़ना सिखाते हैं |

वो हरबार एक नई व्याख्या से भ्रमित करते हैं , पर इस भ्रम के पार ही सत्य है , काले बादलों के पट में ढंके हरिणय सा सत्य |

ठीक उनके नीलाभ वर्ण की तरह , जिस से राधा रूपी स्वर्ण आभा का प्राकटय होता है----जो उनके मूल का सार सत्य है और अंतिम रूप से सिखाता है कि सबके अलग-अलग जीवन है ---जीवन सत्य है |


वस्तुत: अपनी समग्रता में कृष्ण 'भगवान की अवधारणा' को भूलने ---भक्ति का त्याग---लोक कल्याण को भजने और प्रेम को ध्यायने का पाठ है |


अर्पणा दीप्ति 

सोमवार, 26 अगस्त 2024

अदहन के बहाने शब्दों की समृद्धि

 





अदहन;-बिहार के गाँव में भात-दाल जिस बर्तन में बनता है उसे बटुक या बटलोई कहा जाता है | पुराने जमाने में यह पीतल या कांसा का होता था , बाद में मिट्टी या अल्युमिनियम का बटुक प्रचलन में आया | आज भी बिहार के गांवों मे लकड़ी के चूल्हे पर चढ़ाकर इसमे भात-दाल पकाया जाता है | लकड़ी के जलावन के प्रयोग की वजह से पेंदी में कालिख लग जाती है जिसे कारिखा भी कहा जाता है | कारिखा से बचाव के लिए बर्तन की पेंदी में मिट्टी ( चिकनी मिट्टी जिसे गोरिया मिट्टी भी कहा जाता है) का लेबा लगाया जाता है | चिकनी मिट्टी का पिंडी बनाकर घर में पहले से रख लिया जाता है ताकि बाद मे दिक्कत न हो | मिट्टी का लेबा सूखने के बाद बटुक को चूल्हा पर चढ़ाया जाता है | लकड़ी की आग सुलगाई जाती है | चूल्हा से धुआँ निकलने के लिए खपटा या खपडा का उचकून लगाया जाता है | जलावन की लकड़ी जरना कहलाती है, सुखी होने पर यह खन -खन कर जलती है | महरायल जलावन से खाना बनाने में दिक्कत होती है धुआँ अधिक मात्रा मे निकलती है | बटुक या बटलोई में नाप कर अदहन का पानी डाला जाता है | अदहन का पानी जब खूब गरम हो जाए या खौलने लग जाए तब इसमे चावल या दाल डाला जाए ऐसा कहा जाता है | अदहन की एक अलग ही आवाज होती है मानो कोई संगीत हो |घर की स्त्रियाँ अदहन नाद पर फुर्ती से चावल या दाल जो भी धुलकर रखा हो उसे बटुक मे दाल देती हैं इसे चावल या दाल मेराना कहते हैं | मेराने से पहले चावल या दाल के कुछ दाने जलते आग को अर्पित किया जाता है | मेराने से पहले चावल को धोकर उस पानी को गाय भैंस के पीने के लिए रखा जाता है इस पानी को चरधोइन कहा जाता है | मेराने के बाद सम आंच पर चावल को पकाया जाता है | बीच-बीच मे इसे कलछुल से चलाया जाता है  ताकि एकरस पके | चावल जब डभकने लगता है तब उसे पसाया जाता है जिसे माड़ निकालना कहते हैं | साफ बर्तन यानि की कठौता या बरगुना में माड़ पसाया जाता है | गरम माड़ पीने या माड़ -भात खाने में जो आनाद मिलता है उसे लिखकर नहीं समझाया जा सकता है | सामान्यतया यह गरीबों का भोजन है परंतु जिसने इसे खाया उसे पता है कि असली अन्नपूर्णा का आशीर्वाद क्या है ? भात पसाने के लिए बटलोई पर काठ की ढकनी डाली जाती है | भात पसाना भी एक कला है, नौसिखिये तो अपना हाथ-पैर ही जला बैठते है | ढकनी को एक साफ सूती कपड़ा से पकड़ कर माड़ पसाया जाता है | यह साफ सूती कपड़ा भतपसौना  है | भोजन जब पक जाए तब भात-दाल और तीमन  (तरकारी)  मिलाकर अग्निदेवता को पहले जीमाया जाता है उसके बाद घर के बाँकी  कुटुंब जीमते हैं | जीमने हेतु चौका पुराया जाता है , गोरिया मिट्टी से एक पोतन से लीप कर चौका लगाया जाता है | इस चौके के आसान पर बैठ माँ -दादी बड़े ही मुनहार से खिलाती हैं उसका आनंद अलौकिक है | 

अर्पणा दीप्ति 

रविवार, 19 जून 2022

प्रतिभाशाली स्त्रियाँ


 आसान नहीं होता 

प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना ,

क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी |

झुकती नहीं वो कभी ,

जब तक रिश्तों मे न हो  मजबूरी |

तुम्हारी हर हाँ मे हाँ और ना में ना कहना ,

वो नही जानती !

क्योंकि उसने सीखा ही नहीं,

झूठ की डोर मे रिश्तों को बांधना ,

वो नहीं जानती स्वाद की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना ,

वो तो जानती है बेबाकी से सच बोल जाना |


फिजूल की बहस में पड़ना 

उसकी आदत मे शुमार नहीं ,

लेकिन वो जानती है ,

तर्क के साथ अपनी बात रखना |

वो क्षण-क्षण गहने -कपड़ों की मांग नहीं किया करती 

वो तो संवारती है स्वयं को अपने आत्मविश्वास  से,

निखारती है अपना व्यक्तित्व मासूमियत भरे मुस्कान से |


तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें टोकती है ;

तो तुम्हारे तकलीफ मे  वो तुम्हें संभालती भी है |

उसे घर संभालना बखूबी आता है ;

 तो अपने सपनों को पूरा करना भी |

अगर नहीं आता तो किसी के अनर्गल बातों को मान लेना |  

पौरुष के आगे वो  नतमस्तक नहीं होती ,

झुकती है तो तुम्हारे  निःस्वार्थ  प्रेम के आगे ,

और इस प्रेम के खातिर वो अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है |


हौसला हो निभाने का तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना ,

क्योंकि टूट जाती है वो धोखे से,

छलावे से,पुरुष के अहंकार से |

फिर नहीं जुड़ पाती है किसी प्रेम की खातिर |

(पोलेंड की प्रसिद्ध कवियत्री "डोमिनेर" की कविता का हिन्दी अनुवाद )   


शुक्रवार, 15 मार्च 2019

मेरे महबूब शहर की यात्रा- यायावरी बिहार






मेरे लिए यात्रा करना रोमांच से कुछ कम नहीं | बचपन से पापा के साथ यात्राओं का सुदीर्घ अनुभव रहा है | ख़ासतौर पर बात जब अपनी माटी की हो | रोजीरोटी के चक्कर में घर से बेघर हुई लेकिन मन तो अपनी माटी से जुड़ा है | मन का एक कोना अभी भी कहता है “रहना नहीं देस बिराना” लेकिन क्या किया जाए यह जीवन है जीने के लिए समझौता जरूरी है | मैं भी अरसे से समझौतावादी हो चुकी हूँ |


अब बात यात्रावृतांत की-इसबार सफर के लिए मैंने रेलगाड़ी को चुना | इसके पीछे दो मुख्य कारण है एक आपको भिन्न-भिन्न संस्कृति अलग-अलग व्यवसाय के लोग मिलेंगे, दूसरा प्रकृति के विहंगम छटा का सुलोचन दर्शन होगा | हमारी यात्रा 5 मार्च रात के दस बजे सिकन्दराबाद दरभंगा एक्सप्रेस से शुरू हुई |एक बात तो तय है भारतीय रेल आज भी तनाव विमुक्त बड़े ही आराम से चलती है | रात के दस के बजाए ग्यारह बजे ट्रेन सिकन्दराबाद से रवाना हुई | ट्रेन में मुट्ठी भर यात्री सुरक्षा कारणों से मन आशंकित बीच-बीच में जब भी नींद खुली हमारी गाड़ी किसी न किसी स्टेशन पर आराम फरमा रही थी सुबह पांच बजे कोच के अटेंडेंट से पता चला की हम अपने निर्धारित समय से पांच घंटे लेट हो चुके है | भारतीय रेल तेरी जय हम बड़े ही आराम से पहुँचने वाले हैं यह तय था | हमारी सामने वाली बर्थ यात्री विहीन बगल के कम्पार्टमेंट से एक मराठी सम्भ्रांत बुजुर्ग महिला बीच-बीच में आकर गप्पे मार लेती थीं | गप्प क्या कहिये भारतीय रेल को कोस लेतीं थी मैं भी उनके हाँ में हाँ मिला देती थी | ट्रेन में कैटरिंग की सुविधा नहीं थी चाय के लिए काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा | खैर जैसे तैसे चाय के नाम पर गरम पानी और चीनी के घोल जैसी चाय से संतुष्ट होना पड़ा |


इन्तजार की घड़ियाँ खत्म हुई 6 मार्च शाम पांच बजे भिलाई में टीवी टुडे नेटवर्क के भूतपूर्व एंकर पूण्य प्रसून वाजपेयी अपनी पत्नी बिटिया तथा रिश्तेदारों के साथ हमारे सहयात्री बने | उस समय हम अपने मोबाइल में आजतक में लाइव डिबेट देख रहे थे | खैर जब हमारी डिबेट समाप्त हुई वे लोग भी अपने बर्थ के साथ स्थायमान हो चुके थे | उनके एक रिश्तेदार थे जिन्हें बच्चे भी मौसाजी कह रहे थे और बड़े भी मौसाजी रिश्ता हमें कुछ समझ में नही आया | मौसाजी पिताजी यानी कि ससुरजी के पास आकर बैठ गए बड़े ही आदर भाव से पिताजी के पाँव छुआ | और देश की मौजूदा राजनीति पर चर्चा करने लगे | चर्चा का विषय था air strike तथा आगामी लोक सभा चुनाव,पिताजी तो पुरे मोदी के रंग में रंगे थे | वैसे हम बिहारियों की यह खासियत है देश की मौजूदा राजनीति पर चर्चा करते हुए आपको पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी वर्ग से लेकर रिक्शावाला एवं पानवाला भी मिल जायगा | बातचीत का सिलसिला रात के ग्यारह बजे तक चलता रहा | श्रीमती वाजपेयी ने पूछा ये आपके ससुर हैं हमने कहा हाँ | सुबह छ: बजे ट्रेन रांची के हटिया स्टेशन पहुंची | सहयात्रियों का गंतव्य आ चुका था उन्हें सेमीनार में भाग लेना था | हम सबने एक दुसरे को हाथ जोड़ा | मौसाजी ने बड़े ही श्रद्धा से पुन: पिताजी के पाँव छुए | ये हम बिहारियों की संस्कृति है हम बड़े-बूढों का आशीर्वाद पाँव छुकर हमेशा लेते हैं | पूण्य प्रसून जी जब आजतक नेटवर्क में थे घोर मोदी विरोधी थे शायद यही वजह रही उनके नौकरी छोड़ने की | कल की चर्चा में बड़े ही खामोशी के साथ वे पिताजी का मोदी प्रेम सुन रहे थे | चलते-चलते उन्होंने एक मास्टर स्ट्रोक दे मारा पिताजी से कहा अभी जो हमने एक दुसरे का हाथ जोड़कर अभिवादन किया यह राष्ट्रभक्ति है कल की परिचर्चा व्यक्तिभक्ति थी | बड़ा ही अच्छा और यादगार सफर अच्छे लोगों से मुलाक़ात | हम भी सात घंटे बिलम्ब अपने महबूब शहर यानी कि दरभंगा पहुंच गए | आगे का वृतांत अगले आलेख में |
अर्पणा दीप्ति  
      

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2019

कैफियत मन की

अजब है कैफियत मन की 
बिना बादल बरसता है ,
बिना बोले गरजता है ,
कभी तो राख हो जाता है 
कभी ज्वाला कभी चन्दन |

कभी बहता है पानी सा ,
कभी ये आग हो जाता ,
न हो तो कुछ नहीं होता ,
जो हो तो हिमालय हो |

कभी कहता नहीं कुछ भी ,
कभी बेलाग हो जाता है 
कभी दिखता है सिंदूरी ,
कभी होता कस्तुरी |

कभी ये मैं  भी हो जाता ,
कभी ये तू भी हो जाता,
कि सब कुछ व्यर्थ सा लगता ,
कभी मोह में पड़ता |

नया हर अर्थ सा लगता ,
कभी हंसता है  होठों सा ,
कभी नयनों की जलधारा ,
कभी संसार को जीता , 
कभी खुद ही से सब हारा ,
क्योंकि अजब है कैफियत मन की ....

अर्पणा दीप्ति 

रविवार, 10 फ़रवरी 2019

URI:-THE SURGICAL STRIKE








यह फ़िल्म 2016 की वास्तविक घटना पर आधारित है, फ़िल्म के निर्देशक आदित्य धार ने भी कहा है कि उनकी यह फ़िल्म श्रद्धांजली है उन नवोदित देशभक्तों तथा राष्ट्रवादियों को जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की बलि दी है | समूची फिल्म में स्क्रीनप्ले को पांच अध्याय में विभाजित किया गया है | फ़िल्म की शुरुआत जून 2015 से होती है | हालांकि फ़िल्म वास्तविक घटना पर आधारित है लेकिन समय तिथि और वर्ष में कुछ बदलाव किया गया है | निर्देशक आदित्या धार ने वास्तविक घटना में कहीं-कहीं आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया है | फ़िल्म शुरू होती है पाक अधिकृत कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक से |


अब बात निर्देशन की आदित्या धार की यह पहली डेब्यू शानदार रही | जहाँ शार्ट सेलेक्सन जबर्दस्त वहीं वहीं स्क्रीन प्ले भी उतना ही लाजबाव | अब बात विक्की कुशाल की अभिनय का –


फ़िल्म संजू में शानदार गुज्जू की भूमिका, मनमर्जीयां में अमृतसरी लापरवाह रोमियों टपोरी टाइप पंजाबी मुंडा, उरी में समर्पित,ट्रेन्ड मिलिट्री आफिसर विहान सिंह शेरगिल की जबर्दस्त भूमिका में | फ़िल्म में तीन फिजिकल फाईट सीन है जिसे विक्की कुशाल ने अपने दमदार अभिनय से एकदम नैचुरल बना दिया है | यम्मी यामी गौतम इंटेलिजेंस आफिसर कीर्ति कुल्हाड़ी एयरफोर्स पाइलट की छोटी भूमिका में काफी इफेक्टिव हैं | परेशरावल द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तथा सर्जिकल स्ट्राइक के इंचार्ज की भूमिका में शानदार अभिनय | रजीत कपूर सिल्वर बिग तथा बियर्ड में प्रधानमंत्री की कुर्सी को बखूबी सम्भाला है | मनोहर परिकर राजनाथ सिंह भी उनके साथ दिखे हैं | लाइफ ओके के डेली सोप देवों के देव महादेव के  मोहित रैना निडर साहसी जांबाज मेजर करण कश्यप की भूमिका में शानदार |



फ़िल्म का फर्स्ट हाफ बहुत ही शानदार वहीं सकेंड हाफ जरा सा सुस्त या थोड़ा भारी भरकम अंतिम समय में DRDO द्वारा आविष्कार शुरू करना Intelligence gathering में थोड़ा फिल्मी ड्रामा दिखा straitergy की कमी इत्यादि | फ़िल्म के बीच-बीच में भावनात्मक stuff भी आपको देखने को मिल जाएगा | मेरे हिसाब से यह आवश्यक है की war drama जैसी फिल्मों में एक्शन के साथ-साथ दर्शकों को emotion भी परोसा जाए | अन्यथा लगातार माड़-धाड़ से फ़िल्म बोझिल हो जाती हैं |


जहाँ आस्कर विनिंग अमेरिकन फ़िल्म zero Dark Thirty में एक आदमी (ओसामाबिन लादेन) के लिए मिशन को अंजाम दिया जाता है ,वहीं ‘URI THE SURGICAL STRIKE’ में फौज आतंकियों के उस समूह को टारगेट करते हैं जो सुरक्षित घरों में छिपे हुए हैं | इसलिए सकेंड हाफ में कुछ ज्यादा सस्पेंस तो है नहीं उनके घरों में घुसकर उन्हें मारना है बस |



इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं की बाजारबाद, एवं भूमंडीकरण के इस दौर में परिवार के साथ देखने लायक साफ-सुथरी फिल्में आनी बंद हो चुकी है | उरी साफ सुथरी फ़िल्म है जिसे आप अपने पुरे परिवार माँ,बहन,भाई,बच्चों के साथ बैठकर देख सकते हैं | फ़िल्म प्रेरणादायक, ह्रदय को छू लेनेवाला, सच्चाई,दमदार अभिनय तथा देशभक्ति से ओत-प्रोत पूरा पैसा वसूल है | फ़िल्म में थंडर बैक ग्राउंड, साउंड मिक्सिंग, डिजाईन तथा स्पेशल इफेक्ट सभी ऑथेंटिक है | इसलिए फ़िल्म में बंदूक हरेक जगह आग उगलती है जहाँ बंदुक नहीं वहां आफिसर विहान सिंह शेरगिल तो है हीं |
     

    
अर्पणा दीप्ति  

बुधवार, 30 जनवरी 2019

एक भेंट ऐसा भी



बागबान बड़े प्यार से अपने बाग़ की बागवानी करता है ;जब उसका पौध लहलहाता है फलता-फूलता है,बागवान खुशी से झूम उठता है | आज अपनी भी स्थिति कुछ ऐसी ही थी | मेरा विद्यार्थी नवीन मेरे घर आया | जनाब भारतीय सेना में है, जम्मू-कश्मीर में बरखुरदार की पोस्टिंग है | जब ये बारहवीं कक्षा में था ;- हमेशा मुझसे डांट खाता था | बड़ा ही आलसी और सुस्त किस्म का था | बैक बेंचर तथा कक्षा में सोना इसका पंसदीदा काम था | मैं इसे हमेशा लम्बा चौड़ा भाषण देती थी कहती थी hibernation से निकलो खाना और सोना जानवरों का काम है हम मनुष्य बुद्धिजीवी हैं | तब जाकर कुछ क्षण के लिए सक्रिय हो जाता था | तेलंगाना निजामबाद से होने के कारण इसकी हिन्दी में दक्खिनी पुट है | बड़े ही इत्मीनान भाव से कहता था ‘मैम आप टेंशन नको लो’ मैं कुछ करूंगा ! वाकई इसने कर दिखाया !! भारतीय सेना में अधिकारी है लेकिन आज भी उतना ही आलसी ! घर आता है चेहरे पर जटा-जुट अच्छे से उगा लेता है | इसकी बानगी आप मेरे साथ इसकी आज की तस्वीर में देख सकते हैं | 
फोन पर जब भी बात करता है इसका पहला सम्बोधन ‘जय हिन्द’ मैम ही रहता है | भारत-पाकिस्तान के सरहद पर बन्दा फिलहाल तैनात है | पहली पोस्टिंग इसने वहीं लिया है | बड़ी ही निगेबान है इसकी आँखे | एकदम चौकन्ना और चौकसी से दुश्मनों से देश की हिफाजत करता है | आतंकियों से बाएं पाँव में गोली खाकर फिलहाल अपने घर पर तीन महीने से स्वास्थ्य लाभ कर रहा है | कल जब इसने फोन किया तो इसने कहा मैम  सिकन्दराबाद कैंटोनमेंट में मुझे कुछ आवश्यक काम है; आप घर पर रहेंगी क्या ? मैं आप से मिलना चाहता हूँ | मैंने कहा बिल्कुल तुम्हारा अपना घर है आ जाओ | तीन बजे इसने फोन किया; गूगल देवता के माध्यम से मैंने अपने फ्लैट का लाइव लोकेशन इसे भेज दिया | आधे घंटे में बरखुरदार मेरे घर पर हाजिर | पाँव छुने के साथ जय हिन्द मैम उसका चिरपरिचित अभिवादन |  मेरे घर में एक सेकेण्ड भी बैठा नहीं रसोई में मेरे पीछे आकर खड़ा हो गया | मैंने कहा पाँव ठीक नहीं है जाकर बैठ जाओ मैं आती हूँ| हँसते हुए कहने लगा हम फौजियों के लिए ये छोटी-मोटी बात है |  फिर डाइनिंग टेबल पर उसका पसंदीदा कचौरी-आलू और  इलायची अदरक वाली चाय दुनिया जहां की बातें | हाँ चाय वह प्याला में डालकर फूंक-फूंककर पी रह था ! मैंने पूछा ये क्या है ? ऐसे क्यों चाय सर-सर कर पी रहे हो ? कप में आराम से पीओ | हँसने लगा कहा मैम डीयुटी में इतना समय नहीं मिलता और चाय भी एक ही बार मिलता है | इसलिए ऐसे ही आदत हो गया है | आप भी ऐसे पीकर देखो | फिर हमने भी अपनी चाय प्याला में डाल दी और सर-सर के ध्वनि का आनन्द लेते हुए चाय पीने लगे| कक्षा में यह सबसे लम्बा था इसलिए यह अपने मित्र मंडली में पट्ठा फेम से जाना जाता था | आज भी तो ऐसे ही है बिलकुल नहीं बदला | जब चलने लगा मैंने कहा अपना ख्याल रखना घर पहुँचते ही टेक्स्ट कर देना | चिरपरिचित अंदाज में उसने कहा मैम आप टेन्शन नहीं लो | 

प्यार से एक चपत मैंने उसके पीठ पर लगा दिया | ढेर सारा आशीष, खुब तरक्की करो, आगे बढ़ो कर्मयोगी बनो मेरे फौजी – शुभकामनाएं              

निर्मोही कृष्ण (जन्माष्टमी विशेष ) विलंब पोस्ट

  हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की | कान्हा आ  रहें हैं , माता देवकी पुत्र बिछोह में रो रहीं हैं | पिता वसुदेव यमुना नदी से होकर अपने पुत्र...