सोमवार, 14 अक्तूबर 2024

गोप्य प्रसंग







एक बार पार्वती ने पूछ ही लिया, "यह स्त्री कौन है जो आपके केशों में छिपी हुई है ?" और फिर तो वह अपनी शिक़ायत कहती ही गईं। "अर्धचन्द्र है।" शिव ने कहा जैसे उन्होंने पार्वती के शब्द सुने ही नहीं थे। वह कुछ और ही सोच रहे थे।

"अच्छा तो उस स्त्री का यह नाम है जो आपने अभी-अभी कहा। क्यों यही है न?" पार्वती ने व्यंग्य से कहा। भविष्य में हर नारी अपने प्रिय को इसी भाव से उलाहना देने वाली थी।
"तुम सब कुछ जानती हो।" शिव ने अन्यमनस्क स्वर में कहा।
"मैं चाँद के विषय में नहीं आपकी महिला मित्र के बारे में पूछ रही हूँ।" पार्वती ने क्रोधित हो कर कहा।
"अच्छा तो तुम अपनी सहेली की बात करना चाहती हो। लेकिन तुम्हारी सखी विजया तो अभी-अभी कहीं चली गई है। क्यों !" शिव ने कहा। पार्वती का क्रोध सीमाएँ लाँघ रहा था।
शिव और गंगा का मिलन दो चरम स्थितियों के रूप में हुआ था। धरती पर पहुँचने से पहले आकाश से उतरती गंगा उनके सिर पर गिर सकती थी - शिव ने इसकी अनुमति दे दी थी। अन्यथा धरती गंगा का वेग कभी सहन न कर पाती। और तभी से गंगा स्थिर बैठे शिव के सिर को सदा स्नान कराती आ रही हैं। अनेक धाराओं में बंटकर उनके मुखमंडल को धोती हुई गंगा ने अपने निरन्तर प्रवाहित जल की शीतलता से शिव का ताप शांत किया। इस सृष्टि को भस्मीभूत करने से रोका है। गंगा और शिव का यह परोपकारी और चिरनवीन सामंजस्य उनके बीच गोप्य प्रेम प्रसंग भी था। इसलिए पार्वती को सबसे अधिक ईर्ष्या यदि किसी से थी तो गंगा से। वह जब भी शिव के निकट आतीं तो सदा ही गंगाजल की बूँदों को शिव के चेहरे पर बहते, उसे स्पर्श करते देखतीं। शिव के रोम रोम में जैसे गंगा की गंध बस गई थी।

बस यूँ हीं

अर्पणा

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