रविवार, 6 अक्तूबर 2024

सशक्त स्त्री विमर्श को दर्शाती ' THE IDEA OF YOU& A FAMILY AFFAIR'

 हाल की दो फ़िल्में: द आइडिया ऑफ यू (अमेज़न प्राइम, 2024) और ए फैमिली अफेयर (नेटफ्लिक्स 2024)

एक दोस्त ने कहा आजकल फिल्मों पर सिर्फ रिसाइकल पोस्ट आ रहे तो इसीलिए यह नया लिखा। ज़िक्र में आईं दोनों फिल्में कोई सर्वकालिक महान फ़िल्म नहीं है पर अच्छी चिक-फ्लिक्स या romcom हैं। मुझे तो अच्छी लगी। मेरी नज़र से देखना हो तो पढ़िए।
दो बैक-टू-बैक दो हॉलीवुड फिल्में देखी- "द आइडिया ऑफ यू" और "ए फैमिली अफेयर"
दोनों में क्रमशः 40 और 50 साल की स्त्रियों के प्रेम में 24 और 34 साल के पुरुषों को दिखाया गया है। पहली फ़िल्म में एन एक तलाक़शुदा स्त्री हैं और दूसरी में निकोल एक विधवा। हालांकि एन हैथवे और निकोल किडमैन आपकी रेगुलर प्रौढ़ स्त्रियाँ नहीं हैं। कायदे से वे प्रौढ़ कहे जाने लायक ही नहीं लेकिन उम्र एक नंबर है और समाज चाहे भारत का हो या विदेश का दोनों में अपने से सोलह साल छोटे आदमी को डेट करना बिल्कुल उचित नहीं माना जाता। दोनों फिल्मों में नायिकाओं की बड़ी हो चुकी बेटियाँ है- 16 और 24 साल की। पहली फ़िल्म में तो बेटी के जीवन की विसंगतियों को ध्यान में रख नायक-नायिका लंबा अंतराल तय करते हैं। हर जगह मातृत्व की प्राथमिक जिम्मेदारी स्त्रियों पर होती है। यही मुख्य कारण है कि ज्यादातर महिलाएँ प्रेम और रिश्तों में दोबारा प्रवेश नहीं कर पाती हैं। किशोर बेटी के सामने मां का ऐसा युवा पैशनेट प्रेमी थोड़ा असहज करता है। लेकिन दोनों ही फिल्मों में खास बात यही है कि पुरुष उन स्त्रियों के आगे अपने को खोल देते हैं, सहज महसूस करते हैं। दोनों पुरुष शो बिजनेस से आते हैं। उनकी सार्वजनिक ज़िंदगी है और उनको एक तरह से उथला ही समझा जाता है। उनकी छवियाँ हैं। दोनों स्त्रियाँ उन छवियों के जाल में नहीं हैं। वे उनकी फैन फॉलोइंग से परे उनको पोस्टर की शक्ल में जानती हैं पर पसंदगी से दूर हैं। यही बात उनको आकर्षित भी करती है और इसी से वे अपने से परे उन स्त्रियों के जादू में भी आ पाते हैं।
द आइडिया ऑफ यू में बेटी तो तत्काल मान जाती है और उसे खास दिलचस्पी है कि मां का प्रेमी फेमिनिस्ट है। पर फैमिली अफेयर में बिटिया को वक़्त लगता है। खैर! यह टीनएज या युवा बेटी और मां के स्ट्रगल की दास्तान नहीं है। यह फ़िल्में परिपक्व उम्र की स्त्री और युवा प्रेमी के लस्ट की भी कहानियाँ नहीं। आपको प्रेम में यकीन हो और उम्र की जगह मन से उनका ताल्लुक समझते हों तो ये फिल्में आपको अच्छी लगेगी। प्रेम, पूर्णता, इंतज़ार और खुद से ही उन्मुक्त होने की कहानियाँ हैं।
किसी को जब हम ज़रा सा जानते हैं तो और और जानने का मन होता है। दुनिया की नज़र में हम बहुत कुछ छवियों के भीतर कैद होते हैं और उसकी नज़रें एक दम पूर्वग्रह मुक्त होती हैं तो फिर ऐसा ही होता है जैसे इन दोनों फिल्मों के युवा नायकों के साथ होता है। प्रेम आँधी की तरह तो उड़ा ले जाता है पर यह पुरानी फिल्मों के बड़ी उम्र की स्त्रियों से प्रेम की पेचीदगियों से ज़रा हटकर है। मसलन इसमें प्रेम कोई सेफ गेम नहीं, छिपा लेने की मजबूरी नहीं। पर जैसा कि एन कहती है मुझे पता नहीं था कि मेरी थोड़ी सी खुशी से इतने लोगों को परेशानी होगी तो उसकी सहयोगी दुहराती है-मैंने तुमको पहले ही बताया था, दुनिया को खुश औरतें पसंद नहीं।
तो खुश औरतों की यह कहानियां हैं। मन हो तो देखिए।






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