सोमवार, 9 सितंबर 2024

निर्मोही कृष्ण (जन्माष्टमी विशेष ) विलंब पोस्ट

 



हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की | कान्हा आ  रहें हैं , माता देवकी पुत्र बिछोह में रो रहीं हैं | पिता वसुदेव यमुना नदी से होकर अपने पुत्र को लेकर जा रहे हैं | सभी प्रतीक्षारत हैं कृष्ण आ रहें हैं | 

यहाँ हमें यह भी याद रखना होगा कि कृष्ण याद रखना नहीं अपितु भूलना सिखाते हैं ,गोकुल को ..  फिर मथुरा को..और अंत में द्वारिका को भी | ये सब तो मात्र पड़ाव है -कहते रहिए हम आप उन्हें निर्मोही लेकिन जब-जब दिखेगा उनका रत्नजड़ित मुकुट में मोर पंख तब-तब याद आएगा ब्रज का वनप्रान्त  जो द्वारिकेश के यशस्वी भाल पर विराजमान है , कृष्ण बांधना नहीं छोड़ना सिखाते हैं  | वह पलट कर नहीं आते न यशोदा और न राधा के पास , लेकिन जब-जब देखेंगे उस छलिया को नहीं दिखेगा प्रचंड  रिपुरारि सुदर्शन चक्र , बस गूँजेगी मुरली की मीठी तान जो सदा उनके संग रही |


कृष्ण सिखाते हैं लेना , माखन .. गोपिकाओं का मन .. राधा का सर्वस्व .. मथुरा तो कभी द्वारिका |


पर अंत में छोड़ देते हैं सब, यहीं  रह जाने के लिए अंत समय में निर्बाध एकांत में मर जाने को |

कृष्ण छोड़ते हैं रण .. कहलाते हैं रणछोड़ पर नहीं छोड़ते कर्ण  की अनकही पीड़ा को.. भीष्म के कठोर तप को .. और गांधारी के शाप को |

सब जानते हैं कृष्ण करते हैं लीला , रचाते हैं रास , छुपाते हैं स्नान करती गोपिकाओं के वस्त्र |

पर कितने लोग जानते हैं उन एक हजार विवाहलीला के पीछे का सच |

कृष्ण नहीं है सत्यव्रत ---अर्धसत्य --- मिथ्यावचन बोलने के लिए उकसाते हैं ,लेकिन कब कहा उन्होंने अपने आप को सत्यवादी |

वे सत्य के नहीं मानव कल्याण के साथ रहे  जो किसी भी सत्य या धर्मवाक्य से ऊपर हैं | वे जीवन के व्यवहारिक सत्य के साथ रहते हैं  फिर चाहे वो द्रोपदी का हो या बर्बरीक का |

वस्तुत: कृष्ण याद को भूलना और पाए को छोड़ना सिखाते हैं |

वो हरबार एक नई व्याख्या से भ्रमित करते हैं , पर इस भ्रम के पार ही सत्य है , काले बादलों के पट में ढंके हरिणय सा सत्य |

ठीक उनके नीलाभ वर्ण की तरह , जिस से राधा रूपी स्वर्ण आभा का प्राकटय होता है----जो उनके मूल का सार सत्य है और अंतिम रूप से सिखाता है कि सबके अलग-अलग जीवन है ---जीवन सत्य है |


वस्तुत: अपनी समग्रता में कृष्ण 'भगवान की अवधारणा' को भूलने ---भक्ति का त्याग---लोक कल्याण को भजने और प्रेम को ध्यायने का पाठ है |


अर्पणा दीप्ति 

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