:
(उपन्यासों में स्त्री विमर्श -1 , स्रवंति,अगस्त 2009)
-;अर्पणा दीप्ति
बाबलतेरा देश में (२००४) भगवानदास मोरवाल का स्त्री विमर्श की दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण उपन्यास है लेखक ने पूर्वी राजस्थान तथा हरियाणा के सीमान्त क्षेत्र मेवात के एक छोटे से कस्बे वीरपुर गाँव के जनजीवन को उपन्यास का बिषय वस्तु बनाया है समूचा उपन्यास जहाँ एक और स्त्री की दारुण दशा प्रस्तुत करता है वहीं दूसरी ओर उसके व्यक्तित्व के विभिन्न आयामों को सशक्त रूप में दादी जैतूनी ,शकीला, पारो , मुमताज तथा बत्तो जैसे पात्रों के रूप में स्थापित करता है इस उपन्यास की कथा वस्तु इस प्रकार बुनी गई है कि मुस्लिम समाज की स्त्रियों की यातना एक सिरे से दूसरे सिरे तक व्यापत दिखाई देती है इस करुण गाथा को लेखक ने जीवंत पात्रों के द्वारा अदभुत कथा संसार में बदल दिया है
उपन्यास में शकीला तथा अन्य स्त्री पात्रों के व्यक्तित्व का अवलोकन करने पर पता चलता है कि पारम्परिक समाज में औरत होने की पहली शर्त है समर्पण, सर से पाँव तक आत्मसमर्पण -भली स्त्री वह है, जो अपने पुरुष को खुश रखे मुस्लिम समाज की यह कड़वी सच्चाई है कि वहाँ पत्नी की कीमत मेहर है जिन्दगी का फैसला 'तलाक , तलाक और तलाक' जैसे तीन शव्दों पर टिका हुआ है पवित्र ग्रन्थ कुरआन कहता है -"पुरुष स्त्रियों के स्वामी हैं जो नेक स्त्रियाँ होती हैं वे आज्ञाकारी और अपने रहस्यों की रक्षा करनेवाली होती हैं जिन स्त्रियों से विद्रोह होने का भय हो उन्हें समझाओ , अपने बिस्तरों से दूर रखो और उन्हें कुछ सजा दो " (कुरआन ४:५:३४ ) वहीं दूसरी ओर पवित्र ग्रन्थ कुरआन यह भी कहता है कि स्त्रियाँ चाहें तो 'खुल्ला' कर सकती है पैगम्बर मुहम्मद ने तलाकशुदा या विधवा औरत से शादी का आदेश दिया है इसके बावजूद शरियत कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए या यूँ कहा जाए उसे नेस्तानाबूद करते हुए पुरुष स्वयं तलाकशुदा है अथवा चालीस या साठ में कदम रख चुकें हैं ,उनकी पहली प्राथमिकता कुंआरी लड़कियाँ ही होती हैं.
उपन्यास की नायिका शकीला १६ साल की लडकी है तथा हैदराबाद के गरीब मुस्लिम परिवार से है महज चंद रुपयों के लिए उसे ६० साल के दीन मोहम्मद के हाथों बेच दिया जाता है दीन मोहम्मद शकीला को तीन बेटियों की माँ बनाकर मँझधार में छोड़ स्वर्ग सिधार जाता है शरीयत कानून के मुताबिक पिता के संपत्ति में सिर्फ बेटों का अधिकार है अत: दीन मुहम्मद के बहु -बेटे शकीला तथा उसकी बच्चियों को जायदाद से बेदखल कर देते हैं
उपन्यास के एक और स्त्री पात्र मुमताज की शादी नपुंसक अख़लाक़ से हो जाती है अंत में अखलाक मुमताज को खुल्ला देकर पंखे से लटककर अपनी जान दे देता है उपन्यास का एक अन्य पात्र दीन मोहम्मद का भतीजा तथा हाजी चांदमल का पोता मुबारक अली अपनी चाँद-सी पत्नी शगुफ्ता को महज एक छोटी सी घटना के लिए तलाक दे देता है
सजायाफ्ता शगुफ्ता अपना पक्ष रखने की पुरजोर कोशिश करती है , चीखती -चिल्लाती , तथा रहम की गुहार लगती है लेकिन शगुफ्ता की वापसी तभी सम्भव हो सकती थी जब वह किसी दूसरेसे शादी कर बाकायदा पत्नी धर्म का पालन कर उसकी मर्जी से तलाक लेकर वापस आती मुबारकअली इस समझौते को मानाने से साफ इंकार कर देता है रोती बिलखती शगुफ्ता अपनी दो बच्चियों के साथ हमेशा के लिए मायके वापस आ जाती है
वहीं दादी जैतुनी का देवर चांदमल अपने जीवन का साठ दहाई पर कर चूका है ,हज यात्रा भी कर चुका है , लेकिन अपने बेटे वाली मोहम्मद की पत्नी जुम्मी का शारीरिक शोषण करता है एक तरफ जहाँ मुस्लिम समाज में स्त्रियों की स्थिति बद से बदतर है वहीं वीरपुर गावँ की हिन्दू स्त्रियों की स्थिति भी काफी खस्ताहाल है इस बात का जीता -जागता उदहारण धनसिंह का परिवार ,बेटा हीरा तथा बहू बत्तो है बत्तो की तीन बेटियाँ रामरती ,कौशल्या तथा मैना हैं तीनों बहनों की शादी एक ही परिवार में होती है मैना जहाँ पढ़ाई में अव्वल आती है वहीं उसका पति आवारा ,शराबी और बददिमाग है एवं दसवीं में लगातार फैल होता चला आ रहा है अंतत: वह अपनी पत्नी मैना पर चरित्रहीनता का इल्जाम लगाकर उसे घर से बेघर कर देता है
वहीं एक और स्त्री पात्र चंद्रकला अपने पिता के दुष्कर्म का शिकार होने से बचने के लिए अपने खेत में कम करने वाले मजदुर फत्तो जो कि स्वयं एक मुसलमान है , के साथ भागकर शादी कर लेती है एवं पारो के रूप में अपना नया जीवन शुरू करती है
उपन्यास की सशक्त पात्र शकीला स्त्री सशक्तीकरण की दिशा में शिक्षा की मशाल लेकर खड़ी होती है उसका साथ हवेली की सबसे बुजुर्ग महिला दादी जैतुनी बखूबी निभाती है शकीला जब लड़कियों को पढ़ाने का अभियान आरम्भ करती है तो व्यंगपूर्वक उन बच्चियों को शकीला का फौज कहा जाता है , लेकिन जब ये बच्चियाँ आत्म विश्वास अर्जित कर लेती हैं और सदियों से चले आ रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की योग्यता अर्जित कर लेती हैं तो वह व्यंग सम्मानोपाधी बन जाता है "शुरू-शुरू में तो शकीला को बहुत बुरा लगा था लेकिन आज तो इस सम्बोधन को बार - बार सुनाने का उसका मन कर रहा है , पुरे मोहल्ले से कहे कि आज उसे खूब कहें उसे याद आया यह संबोधन सबसे पहले उसने दादी जैतुनी के मुहँ से सुना था उस दिन मुमताज, सबीना , फिरोजा ,फौजिया , मैना , सलीमा , नफीसा , नसरीन चिड़ियों के झुंड से चहकती -फुदकती जा रही थी शकीला के पास पीछे - पीछे जैतुनी भी थी उनके छज्जे पर खड़ी शकीला को देखकर मुस्कराते हुए कहा था उससे - ' ले आगी है तेरी फौज ' फौज क्या वह इन्हें किसी लड़ाई के लिए तैयार कर रही है ? सचमुच बहुत बुरा लगा था शकीला को उस दिन दादी जैतुनी के व्यंग्य का अर्थ वह नहीं समझ पाई बाद में तो हवेली से लेकर पूरे मोहल्ले तक यह दस्ता शकीला की फौज के नाम से जाना जाने लगा आज यही फौज शकीला की पहचान बन गई है इसी फौज के कारण उसका अस्तित्व बचा हुआ है " ( बाबल तेरा देश में )
लेखक शकीला के चरित्र को मजबूती प्रदान करते हुए उसे गाँव का सरपंच तक बना देता है इस संदर्भ में इस उपन्यास की कुछ प्रमुख समस्याएँ द्रष्टव्य हैं लेखक ने ग्रामीण समाज में व्याप्त सड़ांध के साथ - साथ राजनैतिक भ्रष्टाचार को भी उजागर किया है मुस्लिम समाज की करुणगाथा को शकीला - दीनमोहम्म्द , हाजी चाँदमल -जुम्मी , शगुफ्ता - मुबारकअली , मुमताज - लियाकत अली जैसे पात्रोंके रूप में बहुत ही मार्मिक रूप से चित्रित किया गया है स्त्री -चाहे मुस्लिम समाज की हो या हिन्दू समाज की पुरुष द्वारा ओढ़े गए रिश्तों के मुखौटों से किस प्रकार उसका मोहभंग होता है उसे बखूबी दर्शाया गया है
हवेली के लोगों द्वारा शकीला को रूप बदलने वाली साँपन समझाना , जो हर रात अपना रूप बदलकर दीन मोहम्मद पर जादू -टोने करती है , ग्रामीण समाज में फैले अन्धविश्वास एवं जादू टोने की धारणा की तरफ सहज इशारा करता है दादी जैतुनी के बचपन की यादों को लेखक ने सफलता पूर्वक चित्रित किया है इन सबके अलावे पारो तथा फत्तो का प्रेम स्त्री -पुरुष के कोमल पक्ष को उजागर करता है . उपन्यास में दादी जैतुनी - शकीला - मुमताज ,फौजिया , मैना आदि जीवंत पात्रों के माध्यम से तीन पीढ़ियों का संघर्ष दर्शाया गया है. हरियाणी लोकगीत ,मुहावरे , गाली वहाँ की लोकभाषा खड़ीबोली के साथ घुल -मिलकर कथ्य में मिठास घोलती है भाव संवेदना एवं भाषिक संरचना का तालमेल उपन्यास को सहजता एवं सरसता प्रदान करता है
बार - बार इस उपन्यास को पढ़ते हुए यह प्रश्न मन में कचोटता है भारतीय समाज में आज भी स्त्री भोग विलास की वस्तु क्यों हैं ? क्या आगे भी ऐसा हीं चलता रहेगा लेखक ने संकेत दिया है कि स्त्रियाँ यदि पढी -लिखी हों , अपने उत्तराधिकारों के प्रति सचेत हों तो इस शोषण प्रधान व्यवस्था को चुनौती दे सकती हैं तथा सार्वजनिक जीवन को प्रभावित करने वाले पदों पर पहुँचकर सामाजिक परिवर्तन की दिशा तय कर सकती हैं
इस सुन्दर चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत .....
जवाब देंहटाएंAnek shubhkamnayen!
जवाब देंहटाएंMan vishann karnewali katha hai yah!
जवाब देंहटाएंइस नए चिट्ठे के साथ आपका हिंदी ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएं