पुस्तक चर्चा
स्त्री की
संवेदनाओं को चित्रित करती कविताएँ : ‘पृथ्वी तन्हा है’
-डॉ. अर्पणा दीप्ति
"पृथ्वी तन्हा है"
(2013) कवयित्री नीरा अस्थाना का पहला काव्य
संग्रह है। इस संग्रह को पढ़ने से ऎसा प्रतीत होता है कि कविता नीरा के लिए सहज और
स्वाभाविक है। मानो ऎसा लगता है कि नीरा की संवेदनाएँ बड़ी गहन हैं। वे अपनी
कविताओं में स्वयं को जीती हैं, अपनी भावनाओं को शब्दों में
पिरोती हैं एवं उसे काव्य का रूप देती हैं। कवयित्री की कविता में दर्द है और यही
दर्द इन्हें अभिव्यक्ति के द्वार तक ले जाता है। नीरा जब तक सोचती हैं तब तक उनकी
कविता व्यक्तिनिष्ठ है किन्तु जैसे ही वह सोच के दायरे से बाहर निकलती हैं कविता व्यापक
जीवन-जगत के यथार्थ से जुड़ती नजर आती है। इस संग्रह की पहली कविता ’गरीब स्त्री के आत्मकथन’ में कवयित्री कहती हैं-
"मुझ बदनसीब का कुछ नसीब नहीं,/ मुझ गरीब
का कोई अरमान नहीं/कोई गिला नहीं, कोई
शिकवा नहीं/ कोई कल्पना नहीं?"(1)
नीरा की कविता की
संवेदना माँ से शुरू होकर एक आम स्त्री के संघर्ष से जुड़ जाती है। ’माँ’
एवं ’अहसास’ शीर्षक कविताओं में इस दर्द एवं संघर्ष को महसूस किया जा सकता
है -"जीवन में मैंने क्या पाया/ जो
तूने दिया, बस वही पाया/ ऎ माँ तेरे इस
प्यार के बदले/ये जग मुझसे चाहे जो ले ले।" (पृ.2, माँ)"कुछ देखा;
सुना और महसूस भी किया;/
माना जीवन का मोल, और कुछ बेगार भी किया।/....
लब कुछ बोलने को था बेकरार, दिल ने चुप इसे
किया/ यूँ तो हम भी थे बेकार, किसने
जीवन साकार किया। (पृ.76 अहसास)
’बड़ा
है इतना संसार’ कविता में कवयित्री समस्त विश्व की पीड़ा को
चित्रित करती नजर आती हैं-"बड़ा है इतना यह संसार बड़ा/
पर लगता क्यों इतना निस्सार!/ क्यों इसमें
हँसी के कहकहे भी/ दिखते दु:ख की
सिसकियों में लिपटे? (पृ.3)’मन-गगरी’ कविता में कवयित्री ने मन के दर्द को चित्रित
किया है-"मन-गगरी है इतनी भारी/
उठा पाना है जिसको मुश्किल।/ जब हिली तो छलक
पड़ी ये/ आँखों के रस्ते निकली ये। (पृ.6 )’वसंत के फूल’ कविता में काव्याकुल अधीर मन मानो बेसब्री से वसंत का इंतजार कर रहा हो-"जीवन के इस निस्सार पतझड़ में/ वसंत के फूल कब
महकाओगे? (पृ.5)
इस काव्य संग्रह
में कवयित्री का प्रकृति से जुड़ाव वसंत के फूल, कोयल, नदियाँ,
झरने आदि के रूप में यत्र-तत्र दृष्टिगोचर
होता है यथा-"एक सुहाना क्षण/ श्यामल
उषा का शृंगारित वर्ण/ सुहाना मौसम और तारों का रंग/ सहसा प्रकट हुआ दिवस का स्वर्ण रंग।" (पृ.82, प्रकृतिमय)
वर्तमान समय की
ज्वलंत समस्या बेरोजगारी तथा उससे भ्रमित हो रही युवा पीढ़ी की विडंबना को भी कवयित्री
ने ’बेरोजगार नवयुवक’ में दर्शाया है-"वह मुझे मिला/फटे हाल-सा/
जर्जर होता कुर्त्ता/ टूटी हुई चप्प्ल/.......
कभी आतंकित और कभी आतंकवादी-सा!/हाथों में डिग्रियों का बडंल लिये,/ वह आज का
बेरोजगार नवयुवक था।"(पृ.86 )
बाजारवाद एवं
भूमंडलीकरण के दौर में नैतिक मूल्यों का अधोपतन अपनी चरमसीमा पर पहुँच चुका है।
मानवता की आत्मा मानो मर चुकी है- “मानव मूल्यों को बिखरते हुए देखा है।/मानव को मानवता में गिरते हुए देखा है।/ रोशनी की
उँगलियों के निशान बनते हुए देखा है।/ तुम्हें उन निशानों
में बिलखते हुए देखा है।" ( पृ.88,
मैंने देखा है) मानव जीवन क्षणभंगुर है। जीवन और मृत्यु
सृष्टि का नियम है किंतु यह भी उतना ही शाश्वत सत्य है कि इन घटनाओं से प्रभावित
हुए बिना सृष्टि चक्र निर्बाध रूप से चलता रहता है- "फूल खिलते रहेंगे/ पक्षी गाते रहेंगे/.....नदियाँ कलकल करती बहती रहेंगी/ सूरज क्षितिज पर यूँ
ही मुस्कुराता रहेगा।/.....सिर्फ.....मैं
न रहूँगी/ मैं न रहूँगी..... ( पृ. 91 मैं न रहूँगी )
नीरा एक जागरूक कवयित्री
हैं| वे प्रदूषित होते पर्यावरण के प्रति चिंतित हैं। कवयित्री का मानना है
वृक्ष है तो जीवन है तथा समस्त धरा सुंदर
है। खासकर भारतीय संस्कृति में पीपल के पेड़ का अपना पौराणिक एवं धार्मिक महत्त्व
है। ’मुझे याद आता है पीपल’ कविता में कवयित्री ने पीपल
के वृक्ष के धार्मिक महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए यह दर्शाया है कि पीपल का वृक्ष
पर्यावरण को स्वच्छ रखने में काफी मददगार है। वहीं ’देश के
कर्णधार’ कविता में कवयित्री युवापीढ़ी को प्रेरित करती नजर आती हैं।
इसमें कोई दो राय
नहीं होनी चाहिए कि यह काव्य संग्रह स्त्री के अन्तर्मन को अलग-अलग
पहलुओं में विचारों का मंथन करवाता नजर आता है। स्त्री जो बोल नहीं पाती है उसे
शब्द का रूप देती है। पृथ्वी यहाँ स्त्री का प्रतीक ही तो है। पृथ्वी की तन्हाइयों
का अहसास करवाना इस काव्य संग्रह की विशेषता है। स्त्री के दु:ख को अभिव्यक्त करती ये कविताएँ स्त्री विमर्श के वर्तमान परिप्रेक्ष्य
में अपनी एक अलग पहचान बनाएगी।
-----------------------------------------------------------------------------------------------
पृथ्वी तन्हा है/
कवयित्री- नीरा अस्थाना/ मंगल प्रकाशन, दिल्ली/ प्रथम संस्करण – 2013/ पृ.संख्या-111/ मूल्य-150 रु.
मन गगरी से पानी छिलकना, आँखों की रास्ते से बाहर आना---!!!
जवाब देंहटाएंवाह ! प्रशंसार्ह शब्द तथा भाव!