2018 में प्रकाशित ‘लेखकों की दुनिया’ हिन्दी साहित्य का एक बेशकीमती किताब है | यह किताब आपको दुनिया के उन तमाम लेखकों का दर्शन करवाता है जिनसे या तो आप अनभिज्ञ हैं या उनमें से कुछेक की जानकारी आपके पास है | 250 पृष्ठ की किताबवाले नयी दिल्ली से प्रकाशित यह पुस्तक दुनिया के तमाम लेखकों की झलकियों को सहेजे हुए है | हाँ सभी कालखंड के सभी लेखकों की जानकारी तो उपलब्ध नहीं है लेकिन तमाम प्रमुख लेखकों की जानकारी इसमें समाहित है | क्या आप सोच सकते हैं इन लेखकों को अलग से एक-एक कर पढ़ना कितना मुश्किल है ? 250 पृष्ठों में इनका संशोधन कर एकत्रित करना कितना कठिन है लेकिन इन सबको एक जगह एकत्र कर अनोखा और अद्भुत कार्य किया है लेखक सूरज प्रकाशजी ने |
कैसे होते हैं लेखक ? कैसी
होती है उनकी अजीबो-गरीब दुनिया ? उनका दिनचर्या, उनका दुःख तकलीफ, जिन्हें वह
अपने अन्दर समाहित कर दुनिया को अपना सर्वोत्तम देकर जाते हैं | हर लेखक की शैली
अलग-अलग |
अब बात
करते हैं भाग एक 'लेखकों की दुनिया अजब-गजब' की | अजीबो-गरीब तरीके से लिखने वाले कुछ लेखक की अर्नेस्ट हेमिंग्वे, चार्ल्स
डिकेंस, वर्जीनिया वुल्फ, आचार्य नगेन्द्र आदि खड़े होकर लिखते थे | एडमंड रोस्ता अपने
बाथटब में बैठकर कविता लिखते थे तो दिविक रमेश शहतूत के पेड़ पर बैठकर कविता लिखते
थे | सर वाल्टर स्काट घोड़े के पीठ पर सवार होकर कविता रचते थे | चेखव को घड़ी सामने
रखकर लिखने की आदत थी तो अमेरीकी लेखक जान शीवर अंडरवियर में कहानी लिखते थे
क्योंकि उनके पास एक ही सुट हुआ करती थी | रांगेय राघव पैर में रस्सी बांधकर पंखा
चलाते थे और खूब सिगरेट पीते हुए लिखा करते थे | अमृता प्रीतम, बालजाक, तालस्ताय,
दोस्तोवस्की रात में लिखते थे |
घोस्ट राइटिंग करने वाले लेखक दुनिया के हर
भाषा में आपको मिल जायेंगे जिन्होंने नाम बदलकर लेखन किया है | इनमें फर्नादो
पेसाओ आजीवन 75 अलग-अलग नामों से लिखा तो ओ हेनरी ने 14 अलग नामो से लिखा | तंगी
के दिनों में जार्ज बर्नाड शा ने भी नाम बदलकर लिखा | भारतीय लेखको में अमृतलाल
नागर, राही मासूम रजा आदि शुरुआती दिनों में रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भी नाम बदलकर
कविता लिखा |
दुनिया भर में
ऐसे लेखकों की भी कमी नहीं जिन्होंने अलग-अलग कारणों से आत्महत्या की | भारत में
यह आंकड़ा विश्व साहित्य के अपेक्षा कम है | यहाँ केवल छ: प्रसिद्ध साहित्यकारों के
बारे में बताया जाता है |
कहते हैं सरस्वती और लक्ष्मी दोनों का निवास एक साथ नहीं होता | यह भारतीय लेखकों
के विषय में बिल्कुल सही है | लेकिन दुनिया के अन्य भाषा के लेखक भी इससे अछूते
नहीं रहे | दाने-दाने को उन्हें भी मोहताज
होना पड़ा | भारतीय लेखकों में अन्नाभाऊ , गुरदयाल सिंह, सत्यार्थीजी, प्रेमचन्द मधुसुदन
दत्त, मुक्तिबोध, राहुल सांस्कृत्यायन आदि | विदेशी लेखकों में गोर्की,एडगर एलन
पो, ओ हेनरी, चार्ल्स डिकेंस आदि | आर्थिक तंगी में जीते हुए भी इन्होंने दुनिया
को अपना सर्वश्रेष्ठ दिया |
विश्व साहित्य तथा हिन्दी साहित्य में भी
ऐसे लेखकों की संख्या अधिक रही जो पारिवारिक और सामाजिक दबाव को झेल नहीं पाए तथा विक्षिप्त
हो गए | कईयों को तो पागलखाने में भर्ती करवाया गया तो कुछ स्वस्थ होकर वापस आये, तो कुछेक ने अवसाद में आत्महत्या कर ली |
कुछ बायोपोलर डिसआर्डर का शिकार हो गए | जिस कारण यह साहित्य को जितना दे सकते थे
नहीं दे पाए | इनमें अर्नेस्ट हेमिंग्वे, एडगर एलन पो, लियो तालस्ताय, अन्नाभाऊ
साठे देवेन्द्र सत्यार्थी, राहुल सांस्कृत्यायन लिस्ट तो काफी लम्बी है |
बहुत कम
उम्र पानेवाले लेखक भी हुए जिन्होंने कम समय में खूब लिखा और विश्व साहित्य को
समृद्ध किया | ऐसे भी लेखक हुए जिन्होंने सौ साल की उम्र को पार किया और उसके बाद
भी पढ़ने लिखने में लगे रहे | कुछ ऐसे बाल लेखक भी हुए जिन्होंने 11 या 12 वर्ष के कम उम्र में लेखन
कर विश्व साहित्य में काफी नाम कमाया | इनमें ज्योति और सुरेश गुप्ता जुड़वा भाई का
नाम उल्लेखनीय है | जब वे ग्यारह वर्ष के थे 700 पृष्ठ की फेंटसी लिखी भारत में यह
पुस्तक बेस्ट सेलर रही |
इनके अलावे ऐसे भी लेखक हुए
जिन्होंने लेखन कर्म को अपना साधना समझा | किसी भी हालात में अपनी लेखनी को अनवरत
ज़िंदा रखा | पुस्तक में दिए गए सभी लेखकों का नाम लेना तो सम्भव नहीं है कुछ
लेखकों के नाम है जिनमे अज्ञेय ब्रिटिश सेना में रहे, कबीर जुलाहे थे, कमलेश्वर
रात की पाली में चौकीदारी करते थे | जयशंकर प्रसाद तम्बाकू का खानदानी काम करते थे
| तसलीमा नसरीन एम.बी.बी.एस. डाक्टर हैं | गोर्की ने बचपन में बोरा उठाकर कचरा तक
बीना, जान स्टन बैक टूअर गाइड थे | जैम्स जायस गाते थे | बेबी हालदार झाडु-पोछा
करनेवाली घरेलू नौकरानी थी | मराठी लेखक लक्ष्मण राव दिल्ली में हिन्दी भवन के
बाहर फुटपाथ पर चाय बेचते थे | लक्ष्मण राव गायकवाड का तो जन्म ही चोर-उच्चकों की
बिरादरी में हुई थी |
विश्व साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं
जहाँ लेखको ने एक से अधिक भाषाओं में रचना की है | खासतौर से भारत में अधिकाधिक
संख्या में ऐसे लेखक हुए जिन्होंने एक से अधिक भाषाओं में रचना की | बाबा
नागार्जुन ने मैथिली, हिन्दी और संस्कृत में रचनाएं की तो राजकमल चौधरी मैथिली और
हिन्दी दोनों भाषाओं के रचनाकार थे | अमृता प्रीतम और गुरुदयाल सिंह हिन्दी और
पंजाबी दोनों भाषाओं में रचनाएँ की | राहुल सांस्कृत्यायन कई भाषाओं में लिखते और
अनुवाद भी करते रहे |
कुछ ऐसे भी लेखक हुए जीते जी
जिनसे सफलता मुंह फेरे रही | मरने के बाद वे साहित्य जगत के सरताज बने | इनमें
सर्वप्रथम विश्व साहित्य में प्लेटो का नाम आता है | “रिपब्लिक” को उनके मरने के
बाद ही ख्याति मिली | ऐन फ्रेंक, जान केनेडी, हैनरी डेविड, एडिथ होल्डन एडगर पो, फर्नादों
पेसाओ आदि | भारतीय साहित्य में मुक्तिबोध, भुवनेश्वर तथा राजकमल चौधरी को जीते जी
बहुत संघर्ष करना पड़ा मृत्यु के बाद इनके लेखन को ख्याति मिली |
इसके अलावा खतरनाक और हत्यारे लेखक भी हुए तो
कुछ आत्महन्ता भी | तो कुछ ऐसे लेखक भी हुए जिन्होंने अपने जीवन में सिर्फ लिखा और
लिखा |
वहीं विश्व साहित्य के इतिहास में ऐसे भी
लेखक हुए जिन्होंने एक ही किताब लिखकर अपनी अलग पहचान बनाई हालाकि बाद में ये
विस्तृत लेखन भी करते रहे लेकिन प्रसिद्धि इन्हें अपनी इकलौती किताब के बदौलत ही
मिली | इनमें अरुंधती राय का ‘गाड आफ स्माल थिंग्स’ , अन्ना सेवेल का ‘ब्लैक
ब्यूटी’, आस्कर वाइल्ड का ‘द पिक्चर आफ डोरियाँ ग्रे’, मीना लायॅ का ‘इन्सेल’ आदि
प्रमुख है |
अब बात
भाग दो “लेखकों की दुनिया और दुनिया के लेखक” की
इस खंड
में दुनिया भर के लेखकों की जानकारी भाग एक के अपेक्षा अधिक विस्तार से दी गयी है |
दरभंगा के तरौनी में जन्मे बाबा नागार्जुन यायावर तथा फक्कड़ प्रवृति के लेखक थे |
अपने लेखन में वह अपने पैनी तथा धारदार व्यंग के लिए जाने जाते थे | ब्रिटेन की
महारानी के भारत आगमन पर बाबा ने देश का अपमान समझते हुए तीखी कविता लिखी –“आओ
रानी हम ढोयेंगे पालकी/ यही हुई है राय जवाहर लाल की |” इमरजेंसी के दौरान इन्होंने
इंदिरागांधी को बाघिन तक कह डाला | ऐसा कहा जाता है की इंदिराजी बाबा की कविताओं
को बहुत पसंद करती थीं |
इस्मत आपा उर्दू की पहली बोल्ड लेखिका थीं |
स्त्रियों के सवाल के साथ-साथ उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर भी जमकर कलम चलाई |
1941 में इनके द्वारा लिखी गई कहानी ‘लिहाफ’ ने ने भारतीय साहित्य जगत में खलबली
मचा दी | कहानी में इन्होंने समलैंगिकता के मुद्दे को उठाया | उन पर अश्लीलता परोसने
का आरोप लगा, मुकदमा चलाया गया | इस कहानी को हिन्दुस्तानी साहित्य में लेस्बियन
प्यार की पहली कहानी माना जाता है |
ज्याँ पाल सार्त्र की लेखन शैली बड़ी ही अजीब थी
जब वे हाथ से लिखते हुए थक जाते तो वे पैर से लिखना शुरू कर देते | इन्होंने
गम्भीर लेखन के अलावा कई फिल्मे भी लिखी 1964 में इन्होंने ये कहते हुए पुरस्कार
लेने से मना कर दिया कि लेखक को खुद को संस्थान नहीं बनने देना चाहिए | 1980 में
फेफड़े के ट्यूमर के कारण इनकी मृत्यु हुई | वहीं सिमोन अपने आपको दार्शनिक नहीं
मानती थीं लेकिन उन्होंने उपन्यास, जीवनी, आत्मकथा, राजनैतिक लेखन के अलावा स्त्री
विमर्श आदि पर विपुल लेखन किया | 1949 में इनके द्वारा औरतों के पक्ष में लिखी गई ‘The
Second Sex’ एक ऐतिहासिक दस्तावेज है | बाद में प्रभा खेतान ने इसका हिन्दी अनुवाद
किया यह पुस्तक हिन्दी साहित्य में “स्त्री उपेक्षिता" के नाम से उपलब्ध है |
सार्त्र और सिमोन बिना विवाह किये आजीवन एक दुसरे के साथ रहे और मरने के बाद एक ही
जगह दफनाए भी गए|
वर्जीनिया
अंगरेजी की प्रमुख लेखिका मानी जाती हैं लन्दन के साहित्य जगत में इनका काफी नाम
है | 1900 में उन्होंने लिखना शुरू किया | इनकी रचनाओं का 50 से अधिक भाषा में
अनुवाद हुआ | वर्जीनिया ने 1912 में लियोनार्ड वुल्फ से शादी की वीटा नामक एक
महिला से भी इनके समलैंगिक सम्बन्ध रहे | 1941 में आर्थिक तंगियो से परेशान होकर
59 वर्ष की आयु में गले में भारी पत्थर बांधकर नदी में डूबकर इन्होंने आत्महत्या कर ली | वुल्फ
का शव तीन सप्ताह बाद ही मिल पाया था |
कहानियों के साथ अनोखा प्रयोग करनेवाले
रमेश बक्षी का जीवन भी विवादों से घिरा रहा | शराब तथा कई महिलाओं से प्रेम प्रसंग
ने इनके कैरियर को बार-बार ध्वस्त किया | घर की तलाश में वह जीवन भर भटकते रहे |
लेकिन घर बनाए रखने की कला उन्हें आती ही नहीं थी | उनके चिता को अग्नि उनके बचपन
के मित्र प्रभाश जोशी ने दिया |
बहुभाषी प्रतिभा के धनी माइकल मधुसूदन दत्त
को युवावस्था में शराब की लत लग गई | मात्र 48 साल की आयु में ही उनकी मृत्यु हो
गयी | अभावों में जिन्दगी गुजारने वाले मुक्तिबोध का रुझान वामपंथी विचारधारा की ओर
था | “कामरेड तुम्हारी पालटिक्स क्या है ?” उनका सर्वाधिक प्रिय वाक्य था और “अँधेरे”
में उनकी सर्वाधिक चर्चित कविता | श्रीलाल शुक्ल अपने धारदार व्यंगलेखन के लिए
प्रसिद्ध हैं | 1968 में इनके द्वारा लिखा गया ‘रागदरबारी’ का पन्द्रह भारतीय
भाषाओं में अनुवाद हुआ तथा इसका अंगरेजी में भी अनुवाद हुआ |
कितना
लिखा जाए ‘लेखकों की दुनिया’ के विषय में कलम है कि थमने का नाम ही नहीं ले रहा है
| किस्सा दर किस्सा किन किस्सों का वर्णन किया जाय किनको छोड़ा जाए सब एक से बढ़कर
एक लाजवाब | सारे किस्से रोचक | विजय दान देथा की कहानी ‘दुविधा’ पर अमोलपालेकर ने
पहेली फ़िल्म बनाई | फ़िल्म की प्रीमियर के लिए विजय दान देथा को मुम्बई बुलाया गया |
वह अपने छोटे बेटे कैलाश के साथ मुंबई आए | जब लौटकर जोधपुर वापस आए तो बड़ा बेटा
महेंद्र ने पूछा कैसा रहा प्रीमियर ? छोटा बेटा कैलाश ने जबाव दिया बहुत अच्छा |
सब आये थे फ़िल्म की हिरोइन रानी मुखर्जी भी आई उसने तो गजब कर दिया जी सा को किस
कर दिया | महेंद्र ने खुश होकर कहा सच जी सा ! विजयदान देथा ने भोलेपन से कहा
लेकिन एक कमी रह गई नामुराद मफलर बीच में आ गया |
जैसा
की लेखक स्वयं प्रस्तावना में कहते हैं कि दुनिया के हर लेखक अपने शब्दों के जरिए
हमारे बीच जिन्दा हैं | वैसे भी लेखक कभी मरते नहीं अपने शब्दों के जरिए देश काल
और भाषा की सारी सीमा लांघता हुआ हमेशा ज़िंदा रहता है |
इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘लेखकों की
दुनिया’ हिन्दी साहित्य में ही नहीं बल्कि विश्व साहित्य में पहली अनोखी नायाब
पुस्तक है | लेखक का एक बहुत ही इमानदार प्रयास का फल है | इस किताब की विशेषता यह
है की आप जितनी बार इसे पढेंगे यह आपको नया तथा रोचक ही लगेगा | हिन्दी साहित्य को
कालजयी रचना देने के लिए सूरज प्रकाशजी को साधुवाद | लेखक के कलम से
मोती रूपी शब्द अनवरत झरता रहे और हिन्दी साहित्य समृद्ध होता रहे |
अर्पणा दीप्ती
समीक्षित कृति –लेखकों
की दुनिया
लेखक-सूरज प्रकाश
प्रथम संस्करण- 2018
पृष्ठ संख्या-250
मूल्य-400/-
प्रकाशक-किताबवाले, 22/4735
प्रकाश दीप बिल्डिंग
अंसारी रोड
दरियागंज नई दिल्ली-110002
अगर कोई सुधी पाठक इस पुस्तक को पढ़ना चाहते हैं तो लेखक के ईमेल पर सम्पर्क कर इस पुस्तक को प्राप्त किया जा सकता है | kathaakar@gmail.com
लेखकों की अजीबोगरीब दुनियां से परिचय कराता सारगर्भित लेख जो पढने को मजबूर करता।अतिशीघ्र पढूगी
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