सोमवार, 19 अक्टूबर 2015



'बालमन को आह्लादित करती कहानियाँ ’चिड़िया मैं बन जाऊँ
                                                                                                                                                                                                                                                                                                           -अर्पणा दीप्ति






भारतीय साहित्य में कहानी की परंपरा अत्यंत प्राचीन है, कहानी की उत्त्पति कब और कैसे हुई इस बात का उत्तर देना मुश्किल है। बाल कहानी के विषय में यह कहना सर्वथा उचित होगा कि बच्चे प्राचीन काल से अपने दादा-दादी नाना नानी एवं अन्य अभिभावकों द्वारा बाल कहानियाँ सुनते चले रहे हैं , अत: बाल कहानियों के प्रति उनका लगाव होना स्वाभाविक है। वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में यह कहना सार्थक होगा कि बाल काव्य के अपेक्षा बाल कहानियों का अधिक बोलबाला है।
                        एक सफल बाल कहानी वही होता है जिन्हें बच्चे पढ़ना पसंद करे श्रीमती पवित्रा अग्रवाल एक ऎसी ही बालकहानीकार है।इनकी एक बाल कहानी संग्रह पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। दूसरी कहानी संग्रहमैं चिड़ियाँ बन जाऊँपाठकों के लिए प्रस्तुत हैं। इस संकलन में कुल पच्चीस बाल कहानियाँ है और ये सभी कहीं कहीं पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी है।
    ये कहानी बाल मनोविज्ञान एवं बाल सुलभ परिवेश पर आधारित है। प्रत्येक कहानी के पात्र प्राय: बालक-बालिका ही हैं। इस कथा संग्रह की पहली कहानीमैं चिड़ियाँ बन जाऊँका कथा छोटी बच्ची सपना के चिड़ियाँ बनने के कल्पना पर आधारित है-"चिड़ियाँ मुझे बना दे राम, सुंदर पंख लगा दे राम। नील गगन में उड़ जाऊँ हाथ किसी के आऊँ "(पृ.१२) सपने में जब मासूम सी नन्हीं सपना  चिड़िया बनती है तो वह चिड़िया के जीवन में होने वाले तकलीफों से अवगत होती है। वहींदो चोटी वालीदो जुड़वा बहनों श्रुति एवं रूचि की कहानी है। श्रुति शांत है रूचि नटखट है।रूचि की गलतियों की सजा श्रुति को मिलती है। श्रुति इससे दुखी होकर स्कूल बदलने की बात तक करती है तब श्रुति कहती है आप मुझे दो चोटी बना दीजिए -"श्रुति ने चहकते हुए रूचि से कहा अपनी शरारतों की सजा स्वयं ही भुगतना मेरा पीछा छूटा ........मम्मी मुझे आज ही दो चोटी बना दो। (पृ.१६) वहींखाली कागज का कमालमें   तुषार अपने घर के नौकर रमूआ के द्वारा अपहरण किए जाने पर अपनी सुझ-बुझ से बाहर निकल आता है।
       संगत का असर कितना बुरा होता है, इस बात का उदाहरणमाँ मुझे माफ कर दोका बिल्लु है गलत संगत में उसे जुआ खेलने की आदत लग गयी थी और अपनी माँ के द्वारा बार-बार मना किये जाने पर भी वह अपने गलत दोस्तों के संगत में पड़ जाता है बाद में पुलिस द्वारा अपने दोस्तों के पकड़ लिए जाने पर वह अपनी माँ से माफी माँगते हुए कहता है "माँ मुझे माफ कर दो मैंने तुम्हें बहुत दु: दिया है। आज से मैं कभी चोरी नहीं करूँगा.......अब खुब पढुँगा माँ और तुम्हारा बहुत अच्छा बेटा बनुगाँ।"(पृ.२४) वर्तमान इलेक्ट्रानिक मीडिया के युग में बच्चे पत्र-पत्रिकाओं से अलग होते जा रहें  हैं। पढ़ने की अभिरूचि उनमें प्राय: समाप्त होती जा रही है। दृश्य एवं श्रव्य  चलचित्र के प्रति उनका लगाव अधिक है। पढ़ाई की महत्ता को दर्शाती हुई कहानी हैसमाधान रत्ना और प्रीति की माँ उन्हें टी.वी. देखने देने के बजाए पत्र- पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है।इस कहानी संग्रह में कुल २५ कहानी है। सभी कहानी मूल्यप्रद हैं और अपने आप में शिक्षाप्रद भी।पतंग लूटने का मजाकहानी का पात्र देबू कटी हुई पतंग लूटने में चैम्पियन है। जब उसकी माँ उसे उसके पिता के साथ बचपन में पतंग लूटने के दौरान हुए दूर्घटना का जिक्र करती है तो देबू अपनी माँ से वादा करता है कि वह अब कभी भी कटी हुई पतंग के पीछे नहीं भागेगा।
      ’जी का जंजाल कहानीयह दर्शाता है कि वास्तु दोष जैसी कोई चीज नहीं होती है इन सब चीजों में अज्ञानी मनुष्य विश्वास करतें हैं। अगर घर में हवा पानी और धुप का अभाव नहीं है तो घर अच्छा ही होता है।फौजी का बेटामें यह दर्शाया गया है कि नागरिकों के सुझ-बुझ से बड़ा दुर्घटना को टाला जा सकता है। अगर देश का हर एक नागरिक आजाद के जैसा जागरूक हो जाए तो देश में आतंकवादी घटना घटने से रोका जा सकता है।
                                 प्रकृति हमारी संरक्षिका है अगर हम संरक्षण करनेवाले के साथ खिलवाड़ करेंगे तो हम सुरक्षित नहीं रह पाएँगे।कपडे की थैलीकहानी में प्रकृति के प्रति जागरुकता को दर्शाया गया है। कहानी में मुख्य तौर पर  यह दर्शाया गया है कि अगर हम प्लास्टिक के थैली के बजाए कपड़े की थैली या कागज की थैली का उपयोग करे तों धरती को प्रदुषित होने से बचा सकते हैं। वहींसवाल सुरक्षा कानागरिक जागरूकता पर आधरित है। अगर हम जीवन में सावधानियाँ बरतें तो आए दिन होने वाले सड़क दूर्घटनाओं को टाला जा सकता है। नागरिक सुरक्षा के लिए नागरिकों को ही सजग एवं सतर्क होना पड़ेगा।
  अंत में इन बाल कहानियों के बारे में यह कहा जा सकता है सरल एवं सहज बाल परिवेश को आधार बनाकर लिखी गयी यह कहानी अपने आप में रोचक,प्ररेक एवं सोद्देश्य पूर्ण है।ये कहानियाँ बच्चों को पर्व-त्यौहार नैतिक मूल्यों एवं राष्ट्रप्रेम का संदेश देती दीखती है। इन कहानियों के विषय में यह भी कहना उचित होगा कि इन कहानियों में से एक का उदाहरण देना अन्य कहानियों को छोड़ना दूसरे के साथ अन्याय करना होगा।ये कहानियाँ अपनी विषय विविधता के कारण बच्चों के जिज्ञासू प्रवृति को शमन करने में सक्ष्म नजर आती हैं। शुभकामनाओं के साथ प्रस्तुत बालकथा संग्रह बच्चों में लोकप्रिय होगा क्योंकि इनके सच्चे समीक्षक तो बच्चे हीं है।




समीक्षित कृति-चिड़िया मैं बन जाँऊ
लेखिका -पवित्रा अग्रवाल
प्रथम संस्करण-२०१४
प्रकाशक-अजय प्रकाशन,महरौली नई दिल्ली
मूल्य-२००/-
पृष्ठ-८७

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