बुधवार, 2 मई 2018

मैं क्यों लिखती हूँ ?


खुद को प्रकट करना किसी के लिए आसन है तो किसी के लिए मुश्किल | जो कुछ मेरे भीतर है जिसका परिचय मैं दुनिया को देना चाहती हूँ क्या है वह जो मै आप सब को बताना चाहती हूँ, साझा करना चाहती हूँ ? कभी कहानी इसका माध्यम बनता है तो कभी कविता | कभी कुछ बातें डायरी में नोट कर लेती हूँ | लेकिन यह लिखना, कहना और बताना है क्या ?
  पतझड़ खुद को टूटी पत्तियों में अभिव्यक्त कर लेता है, निपाती उसके पेड़ और ठूंठ में , वसंत खिलती हुई कलियों में, समन्दर खुद को नीले रंग में तो कभी अपनी अथाह गहराई में | शायद मेरी भी अभिव्यक्ति की जिद जब ज्यादा आवेग में भर जाती है तो यही समन्दर खुद को तूफान में प्रकट कर लेती है |
हिमालय अपनी सफेद चादरों में, सदानीर नदिया अपनी दूर-दूर तक फैले कछारों में पानी को अपने अंक में समेटते हुए अपने अस्तित्व को जताती हैं | पक्षी गाते हुए, तो जुगनू अपने रोशनी  से रात के अँधेरे को काटते हुए,तितलियाँ अपने सुरमई और सुनहरे रंगों में खुद को अभिव्यक्त करते हुए मानो पलक झपकते ही उनके पंखो पर बिखरे रंग उनकी कहानी ही तो कहती है | मधुमक्खियाँ अपने को शहद में प्रकट करती हैं |
सर्दियों की एक अलसुबह ठंढी भोर में जब रात भर गिरती ओस की नन्हीं बूंदों से घास भारी होने लगती है, जब अपने घोसलें में सिकुड़ती चिड़ियाँ बस किसी तरह सुबह हो जाने का इन्तजार  करती है | रात भर की कठिन ड्युटी करने के बाद चाँद भी पलके झपकाने लगता है ठीक उसी समय दबड़े में दुबका मुर्गा जोरों से कुकड़ू कू  चिल्लाकर अपने उल्लास को प्रकट करता है मानो कह रहा हो जी हाँ मैं हूँ |
कैसे कहूँ की अपने को अभिव्यक्त करने के इतने खुबसूरत तरीके मेरे पास नहीं हैं | अपने खाली हाथ किसे दिखाऊं | लेकिन कुछ तो है जिसे मैं दिखाना चाहती हूँ “एक दुनिया” जिसे मैंने अपने आस-पास महसूस किया एक जीवन जिसे मैंने अपनी हथेलियों में सहेज लेना चाहा, जो खुद को जीने की आकांक्षा में प्रकट कर लेना चाहती है | उसके उम्मीदों से भरे हाथ उसकी जिजीविषा उसकी जद्दोजहद उसकी अपनी अस्मिता की तलाश मानो एक कहानी जता रही थी |
क्रमश:


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