मैंने आसानी से उन चीजों की तलाश छोड़ दीं जो मुझे पसंद रहीं और उन पर राज़ी होना सीख लिया नियति मेरे रस्ते में लाती गई। इसमें कोई बुराई नहीं! इंसान भाग्य को रोता है पर नियति को स्वीकारता भी है। कर्म अपने हाथ में है और कुछ प्रारब्ध भी है।
खैर! इस भूमिका के पीछे बात इतनी ही है कि बचपन में फोटोग्राफी का एक शौक चढ़ा। लगा आगे भी की जाएगी। मेरी सबसे प्यारी सखी ने एक कैमरा खरीद कर दिया था जब मैं पहली बार दिल्ली जा रही थी। उस ट्रिप या उसके बाद भी कुछ कुछ तो करती रही पर नियमित नहीं रही। इसलिए शौक या स्किल कुछ अधिक विकसित हुआ नहीं। एक और कमी है मुझमें फ्रेम बनाने का धैर्य या रोशनी और छाया के खेल को पकड़ने का हुनर भी नहीं। फिर भी शौक ज़ोर मारता है कभी कभी।
इसीलिए यह भी करती हूँ।
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