मंगलवार, 8 जनवरी 2019

मेरे शब्द जिन्दा लोगों के लिए








शब्द एक महत्त्वपूर्ण तथा आवश्यक औजार ही तो है जिसे व्यक्ति सम्वाद करता है | शब्द एकत्रित हो वाक्याकर रूप लेती है भाषा कहलाती है | भाषा साहित्य की अमूल्य उपलब्धी है | भाषाविज्ञान के अंतर्गत इसका विस्तृत एवं विशद अध्ययन किया जाता है | जो व्यक्ति सम्वाद विज्ञान से जुड़े हुए हैं उन्हें यह अच्छे से ज्ञात है; मनुष्य के जीवन में शब्द का कितना अहम स्थान है | सार्थक  शब्दों का  चयन आपके सम्वाद में गलतफहमी पैदा होने से बचाता है | सही समय में प्रयोग किया गया सही और सटीक शब्द आपको आशावान, सहयोगी तथा न्यायपूर्ण बनता है

        आप अपने अनुभवों के आधार पर स्वयं को परख सकते हैं | अगर आप पेशे से डाक्टर या वकील हैं तो क्या आपके अच्छे शब्दों ने आपके मुवक्किल या रोगी का मनोबल बढ़ाया? या फिर आपका निन्दा या उनके अन्दर कमियों को  ढूंढने वाले शब्दों ने उनके मनोबल को गिराया है ? आप किन शब्दों का चयन किन परिस्थितयों में करते हैं यह आप पर निर्भर करता है:-प्रशंसा या निंदा, अच्छा या बुरा, सहमती या असहमति ?


 अब कुछ बातें वर्तमान सन्दर्भ में मनुष्य के जीवन शैली तथा उसके बदलते एवं खंडित होते मूल्यों की:-
साहित्य की किसी भी विधा से हमेशा यह अपेक्षा रहती है कि वह मनुष्यों के संस्कारों को परिष्कृत करे, उसमें मानवीय मूल्यों की चिंता हो,परिष्कृत जीवनशैली हो, जिन्दगी के नैतिक फैसले के साथ-साथ न्याय और अन्याय की संघर्ष भूमि हो ! किन्तु वर्तमान सन्दर्भ में ये सारी बातें बेमानी दीखती है | मनुष्यता का नैतिक क्षरण हो चूका है , वह सपने तो देखता है लेकिन उसके सपने क्षणभंगुर रेत पर बने उस घरौंदे के मानिंन्द है जिसमें नैसर्गिकता तो है, किन्तु उंचाई और गहराई नहीं | जहाँ एक तरफ जीवन में आनंद उपेक्षित हो गया है वहीं रोटियाँ उसके दोनों आँखों के बेहद समीप आकर खड़ी हो गई है ; इतना समीप कि उसके आगे उसे कुछ सूझता नहीं है |  उसकी मुस्कान धूमिल हो चुकी है, हाय-हाय करते वह पीड़ा में जी रहा है ; सम्वेदनाओं में पल रहा है | मनुष्य की पीड़ा और संघर्ष दोनों एकाकार हो चूका है | जीवन की छोटी से छोटी घटना को हर कोण से जांचा-परखा जाने लगा है | मानो आस्था-विश्वास और मनुष्यता नोच ली गयी हो | समाज की उपभोक्तावादी संस्कृति में झूठ,फरेब, छल, दगाबाजी, दोमुहपना, रिश्वत,दलाली, भ्रष्टाचार जैसे अनैतिक आचरणों को सार्वजनिक रूप से स्वीकृति का ठप्पा लग गया है | आज के भूमंडीकरण के दौर में ये तो बात हुई मनुष्यता की |


अब किस्सागोई शब्द का ! शब्द तो हमारे बीच बहुल मात्रा में है जिसमे मनुष्य के भाव,उनकी उत्तमता उनकी अनुत्तमता का स्वरूप, मनोवेगों का प्रवाह, उसका क्रोध, उसकी करुणा, दया-प्रेम तथा उसके अंत:करण के सौन्दर्य को हम देख पाते हैं |


     वह शब्द हीं तो है जिसके द्वारा हमें इतिहास, वैज्ञानिकता, दर्शन, अमानवीय व्यवहार, मानवीय चेतना, माधुर्यता, दीन-दुखियों की पीड़ा, आनन्द-क्लेश एवं मानव जीवन पर परिस्थितजन्य प्रभाव की यथार्थता सुन्दरता कोमलता आदि का बोध होता है |


  शब्द जिन्दा होते हैं; इनमे अद्भुत प्राण शक्ति होती है और एक आत्मा भी ! शब्द की सत्ता और महत्ता को न तो हम नकार सकते है और न ही इनकार कर सकते हैं | हमारे बुजूर्ग हमेशा हमे अपशब्द कहने से रोकते हैं | उन्हें शब्द की सत्ता तथा  उसकी ताकत का भान था | चूंकि वे आशीर्वाद और अभिशाप के लिए प्रयोग किए जानेवाले शब्दों की ताकत को जानते थे |


दक्षिणी प्रशांत महासागर में सोलोमन द्वीप एक देश है ;जो हजारों द्वीपों को मिलाकर बना है | इस द्वीप समूह के आदिवासी समाज में एक अद्भुत और अनोखी प्रथा का प्रचलन है | ये आदिवासी अभिशाप जादू का अभ्यास विशालकाय पेड़ों को सुखाने के लिए करते हैं | अगर पेड़ अति विशाल है जिसे कुल्हाड़ी से काटना असम्भव है किन्तु अगर इसे काटना अनिवार्य है तो आदिवासी उस पेड़ को घेर लेते हैं ;उसके चारो तरफ घूमते हुए गालियाँ देते हैं , नकारात्मक रूप से श्राप देते हुए पेड़ पर चिल्लाते है | यह नकारात्मक  ऊर्जा पेड़ में जीवन शक्ति को नुकसान पहुंचाती है जिसके परिणामस्वरूप कुछ दिनों में पेड़ मरकर/सुखकर जमीन पर गिर जाता है | हमारे शास्त्रों में भी कहा गया है मनुष्य के जिह्वा में सरस्वती का निवास होता है | हम जैसा सोचते है जिन शब्दों का प्रयोग करते हैं हमारा व्यक्तित्व उसी के अनुरूप निखरता है | सकारात्मक शब्द सकारात्मक ऊर्जा लेकर आता है नकारात्मक शब्द  नकारात्मक ऊर्जा हमारे अन्दर भरता है |

संस्कृत में कहा गया है :-“वचनम् किम दरिद्रता” |

मनुष्य अगर ज्ञान से समृद्ध है किन्तु वह सही शब्दों का चयन सही जगह पर नहीं कर पाता है तो उसका ज्ञान व्यर्थ है | कुछ लोग अच्छे वक्ता होते हैं; उन्हें यह अच्छे से पता होता है कि शब्दों के साथ कैसे छेड़छाड़ कर सही क्रम में सजाकर वजनदार बनाकर सही जगह पर उसका इस्तेमाल कर श्रोता को अपने तरफ आकर्षित किया जा सकता है |

                          
                         शब्द इतना वजनी होता है कि  वह आपकी आत्मा को छलनी कर सकता है ; आपको मरने के लिए छोड़ सकता है, पुनः जीवित भी कर सकता है | शब्द में इतनी शक्ति होती है कि वह आपको अपने तरफ आकर्षित कर सकता है; प्रेम तथा घृणा का पात्र बना सकता है; आपको छल सकता है ; आसानी से आपको प्रभावित कर सकता है | शब्द इतना बलशाली होता है कि वह आपको राजा-रंक दोनों बना सकता है | भले ही आप राजा के पुत्र क्यों न हो –आप अपने को अभिव्यक्त करना नहीं जानते ! अपने शब्दों द्वारा प्रभावपूर्ण सम्वाद नहीं कर सकते, आदेश देना या शासन करना नहीं जानते- तो आप अच्छे शासक बनने योग्य नहीं हैं | हमेशा यह याद रखना होगा कि शब्द लोगों को बाँट सकता है; जोड़ सकता है; तन और मन दोनों को आहत कर सकता है सुकून भी पहुंचा सकता है | हमे परिस्थति विशेष का अवलोकन करते हुए सही, सटीक एवं उपयुक्त शब्दों का चयन करना चाहिए |
अर्पणा दीप्ति   
     

2 टिप्‍पणियां:

  1. अच्छे सादगीपूर्ण और व्यवहारिक विचार प्रवाह। लेकिन मैं शब्द नही मौन की चारण हूँ। कभी कभी जब शब्द असमर्थ हो जाते है तब मौन मुखर होता है।

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  2. कभी-कभी मौन मुखर होता है,हमेशा नहीं

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