अच्छा पर्यावरण भी अब लग्ज़री है। हम गरीबों को नहीं है हासिल।
शुक्रवार, 14 नवंबर 2025
चाँद का पहाड़
बुधवार, 29 अक्टूबर 2025
छठ पर्व मूलभावना और पूर्वाग्रह
आप बिहार को, बिहारियों को , उसके
पर्व त्योहार , रीति रिवाज को गाली दीजिए, आलोचना करिए, कोई कुछ नहीं कहेगा. बिहारी ही समर्थन करने कूद जाएगा. सबको पोलिटिकली
करेक्ट कहलाना जो है.
बहुत दिक़्क़त है भाई. बिहार ,
बिहारी और छठ से.
होली , दीवाली आते ही भाई लोग क्यों रंगीन हो उठते हैं और जगमगा उठते हैं?
किस पर्व के मूल में स्त्री विरोध
नहीं?
होलिका दहन बंद हो. रावण दहन भी. हम
तो दोनों के विरोधी हैं.
और दीवाली क्यों मनाते हो? सीता के आगमन पर दीये जलाते हो?
कौन लौटा था विजय पथ पर?
हमको कोई विरोध नहीं.
होली मनाना जरुरी है? किसके लिए? किस स्त्री की उपलब्धि पर?
दुर्गा पूजा और गणेश पूजन में नदियों
का क्यों हाल बुरा करते हो?
बहुत आसान है बिहार की आलोचना.
क्योंकि हम सुन लेते हैं और आत्मालोचन करने लगते हैं.
मैं भी मानती हूँ कि हर पर्व के मूल
में स्त्री पक्षधरता नहीं है, उसकी
मुश्किलें हैं. सारा बोझ उसके कंधे पर है.
लेकिन छठ में मैंने जो बचपन से देखा
है, वो अनुभव बता सकती हूँ.
मेरे यहाँ छुट्टी लेकर देश परदेस से
लड़के लौटते रहे हैं.
छठ सहयोग का पर्व है सामाजिकता का |
व्रती में इतना दम कहां कि वो कोई काम कर सके.
सामूहिकता का पर्व इसीलिए कहते हैं
कि काम का बोझ सब पर पड़ता है, सिर्फ
स्त्रियों पर नहीं.
अब आते हैं - छठ के मूल भाव पर.
सूरज की पूजा, प्रकृति की पूजा, फल फूल
और नदी का साहचर्य. सब बढ़िया है लेकिन मूल भाव पुरुष समर्थक था. अब बदला है.
सिर्फ छठ ही नहीं, तीज , जितिया , करवा चौथ इत्यादि.
छठ पूजा अपने परिवार के लिए की जाती है जिसमें पुरुषों के नाम पर अरग देते रहे हैं. मैंने पिछले दस सालों में नियम बदलते देखा है. अब लड़कियों के नाम पर भी अरग देते हैं. जितिया करती हैं माँएँ.
जो धर्म और रीति रिवाज समय के साथ
नहीं सुधरते , उन्हें वक्त ख़ारिज कर देता है,
आप आलोचना का टूल लेकर बैठे जुगाली
करते रहिए. बात सुधार की होनी चाहिए, दुरदुराने
से कुछ नहीं होता.
हर पर्व में , हर पूजा -पाठ में पाखंड है. उन्हें सुधारने की जरुरत है. लेकिन कैसे?
मेरी दोस्त की एक बात हमेशा याद रहती
है- धर्म का सांस्कृतिक पक्ष स्वागत योग्य है.
जिसमें उत्सव है, चमक -दमक और सामूहिकता है.
अब अगली आलोचना क्रिसमस की करेंगे न
आप लोग?
अगले महीने ही है जब सारी दुनिया लाल
सफेद रंगों से ढँक जाएगी.
जिंगल बेल … सुनाई देगा. वहाँ भी एक
पुरुष की वापसी होगी और सारी स्त्रियाँ डिनर बनाएँगी, कुकीज़ बनाएँगी.
सैंटा आएगा …. उपहार बांटने. कितना
बड़ा हसीन फरेब है न ! बच्चे इसी में खुश ! हम उनसे ये ख़ुशियाँ कैसे छीन लेंगे ?
क्रिसमस की सुबह वे अपने सिरहाने टटोलेंगे और
उपहार ढूँढेंगे. उनको सच्चाई तब बता पाओगे?
और हाँ… मैं छठ करती हूँ जितिया और तीज भी ||
जिसको जो अच्छा लगता है, जिसमें खुशी मिलती है, वो करे.
बात जब भी हो, खूबियों और कमियों दोनों पर हो.
पूर्वग्रह से भर कर नहीं।
शुक्रवार, 3 अक्टूबर 2025
गिरते हुए आप कहाँ अटक रहे हैं यह भी बहुत महत्वपूर्ण है।
मैंने आसानी से उन चीजों की तलाश छोड़ दीं जो मुझे पसंद रहीं और उन पर राज़ी होना सीख लिया नियति मेरे रस्ते में लाती गई। इसमें कोई बुराई नहीं! इंसान भाग्य को रोता है पर नियति को स्वीकारता भी है। कर्म अपने हाथ में है और कुछ प्रारब्ध भी है।
शुक्रवार, 5 सितंबर 2025
गणपति का आगमन
जब से हम हैदराबादी हुए गणपति उत्सव मानों खुशियों का खजाना | खासकर अनुराग बाबू को यह
त्योहार सबसे ज्यादा भाता है | अपने छुटपन में बप्पा के हाथ से लड्डू चुराकर खाते थे
, अब बड़े हो चूकें हैं तो प्रतीक्षारत रहते हैं कि माँ कब पूजा करेंगी और एक पूरा लड्डू
उनके हाथ में देगी | लड्डू और मोदक बप्पा अनुराग बाबू दोनों को प्रिय | इकोफ्रेंडली गणू महराज अनुराग बाबू एवं हम सबको प्रिय
|
इस वर्ष
परिवार में सूतक होने के वजह से बप्पा का स्वागत हम कर नहीं कर पाए | विगत वर्ष बप्पा
के आगमन एवं पूजा की कुछ तस्वीरें
आस्था
व्यक्तिगत और उत्सव सार्वजनिक होता है |
गणपति
का आगमन हमेशा से एक उत्सव रहा है |
अच्छा
लगता है उनका घर में आना और रहना |
पिछले साल
भी बारिश हुई
मैं
दोपहर में काम से लौटते हुए एक फूलवाले भैया से फूल/माला लेती रही हूँ। उन भैया को
दिखाया था हमारे गनु महराज बहुत छोटे और cute से हैं। उनको भारी भरकम माला सूट नहीं करेगी। तो आप खुद गूँथ देना या मैं फूल ले
जाकर पंखुड़ियों से गूँथ लूँगी। मैं दोपहर में तो उनके पास गई नहीं, देर शाम जाने पर लग रहा था सब बिक न गया हो। पर
नहीं उन्होंने दो सुंदर मालाएँ मेरे लिए रखी थी।
आक/अकवन के फूलों की यह माला जिसे दोहरा करने पर
भी भार न हो और गणपति की मूर्ति पर ठीक से एडजस्ट हो जाए। उतनी बारिश में भी यह
माला ताजी और अच्छी हालात में रही और उन्होंने मेरे लिए रखी। यह छोटी सी बात है पर
इसने मन को अच्छा कर दिया।
करीबी
कहते हैं नज़र लगती है तुमको। फिर मैं सोचती हूँ ऐसा क्या है कि नज़र या नकारात्मकता
मेरे लिए आए। मन उदास भी होता है। किसी के लिए कोई नकारात्मक सोच मैं रखती नहीं
फिर ऐसा मेरे साथ क्यों होता है? लेकिन
उसी वक़्त में कोई बहुत ही अच्छी बात होती है। जैसे कल यह बात हुई। इससे मेरा विचार
बनता है कि मेरे लिए नकारात्मक सोच के लोग बहुत कम होंगे पर सकारात्मक और अच्छा
सोचने वाले कही ज्यादा। आप अपनी पॉजिटिव एनर्जी मुझे भेजा कीजिए। उतना ही चाहिए
जीवन में। फूल वाले भैया जितनी उदारता, परवाह
और अच्छी सोच।
रोज़ की
भागदौड़ में सुबह तो अच्छे से समय नहीं दे पाती उनको, वे भी समझते हैं पर इतवार को सुबह मानो सारे फूल उनके लिए खिले थे।
विघ्नहर्ता
मंगलमूर्ति अपने सभी भक्तों पर कृपा बनाएं रखना | समस्त जीव एवं जगत का कल्याण करना
|
गुरुवार, 28 अगस्त 2025
हैदराबाद की सड़कों पर कहीं
बारिश होकर जा चुकी है थोड़ी फुहारें अभी भी बाँकी हैं । आसमान नीला और धुला हुआ दिख रहा है । पत्ते अपने अलग अलग हरे रंग में चमक रहे हैं । नाले भी कुछ इठलाती हुई है। सड़कों पर थोड़ा पानी है पर थोड़ा ही। जाने क्यों मन भरा हुआ है। रात सपने में बहुत चलना हुआ। उसी की थकन होगी। वरना बारिशें किस मन को धो पोंछ नहीं देती?
परंपराओं को वक़्त के हिसाब से बदलना चाहिए
यूँ तो शिव के अनंत रूप हैं पर पार्वती वल्लभं सर्वाधिक काम्य है। पार्वती ने शिव की अन्यमनस्कता, पिता की इच्छा और सामाजिक परिस्थितियों, अन्य बेहतर विकल्पों की मौजूदगी के बावजूद अपने प्रेम में उनका वरण किया और विवाह के बाद भी भूतनाथ को उनके स्पेस में वह रहने दिया जो वह थे। व्यक्तिगत स्वायत्ता और प्रेम का ऐसा मेल आकर्षित करता है।
मेरी सहेली के इंस्टाग्राम की स्टोरी थी ये तस्वीर। सच पूछिए तो ऐसा आसमान अब किस्मत वालों को नसीब है। हमें कहा! ये नदी ये आसमान और नीला रंग तस...
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महात्मा बुद्ध के बाद भारत के सबसे बड़े लोकनायक महात्मा तुलसीदास थे। वे युग्स्रष्टा के साथ-साथ युगदृष्टा भी थे। आचार्य हजारी प्रस...
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अर्पणा दीप्ति यथार्थ मानव जीवन की सच्ची अनुभूति है जिसके द्वारा हम अपने जीवन में घटित होने वाले घटनाओं एवं भावनाओं का अनुभव करते हैं।...

