हाल की दो फ़िल्में: द आइडिया ऑफ यू (अमेज़न प्राइम, 2024) और ए फैमिली अफेयर (नेटफ्लिक्स 2024)
रविवार, 6 अक्टूबर 2024
सशक्त स्त्री विमर्श को दर्शाती ' THE IDEA OF YOU& A FAMILY AFFAIR'
गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024
संवाद और संवेदनाओं " की रेसिपी "लंचबाक्स
बुधवार, 2 अक्टूबर 2024
HIS THREE DAUGHTER
शुक्रवार, 20 सितंबर 2024
प्राइड एण्ड प्रेजूडिस [2005] Pride and Prejudice
लिज़ अपनी नवविवाहित सहेली शार्लट के पास गई है जहाँ उसके होने की खबर पा कर मि. डार्सी भी आते हैं | कहानी से अपरिचित दर्शकों को यह महज संयोग लग सकता है. वहीं चर्च में डार्सी के करीबी फिट्ज़ विलियम से बातचीत के दौरान लिज़ को पता चलता है कि उसकी सबसे सुन्दर और प्यारी बहन जेन के टूटे हुए दिल के पीछे इसी शख्स का हाथ है जिसे वह अब नफ़रत जैसा कुछ करने लगी है. बावजूद इसके उसे समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर कोई ऐसा कैसे कर सकता है? प्रेम में डूबे दो लोगों को अलग करने वाले मि. डार्सी के प्रति अपने गुस्से, अपमान-बोध और जेन के दुखों का तीव्र स्मरण उसे ऐसे भावोद्वेग में डालता है कि वह चर्च से भागती है | एलिज़ाबेथ एक पुल के ऊपर दौड़ रही है, उसके भीतर के दाह को शांत करने के लिए ही मानो बाहर तेज़ बारिश हो रही है जिसमें भींगती हुई वह विशाल खम्भों और दीवारों वाले प्रांगण में पहुँच जाती है | दूर-दूर तक फैले हुए लम्बे पेड़ों से घिरी बारिश के कोमल सांवले अँधेरे के बीच, पानी से बेतरह तर-ब-तर लिज़ की आँखों से धारासार आंसू बह रहे हैं |मानो उसका संतप्त हृदय बरस रहा हो, तभी सामने दीखते हैं मि. डार्सी! उन्हें वहां देख लिज़ चौंकती है, और उसके साथ दर्शक भी |
मि. डार्सी के चेहरे पर कुछ अलग किस्म का रूमानी तनाव है; जैसे कोई किशोरवय लड़का पहली बार प्रेम-निवेदन करने को प्रस्तुत हो | गहन आत्म-संघर्ष के बाद वह कह पाता है कि उसके इस जगह पर आने का मूल कारण एलिज़ाबेथ का वहां मौजूद होना है | मि.डार्सी का कहना है कि वह लिज़ के जादू में बिंध कर यहाँ आए हैं , फिर भी अपने भावों को बयां करना बेहद मुश्किल है | बहुत कोशिश करने पर जिन शब्दों को वह कह पा रहा है, उन्हें सुन कोई भी स्वाभिमानी स्त्री उसके प्रेम निवेदन को स्वीकार नहीं करेगी | जबकि लिज़ तो पहले ही भरी पड़ी थी अपमान-बोध और वेदना से | जब वह उसके निम्न स्तर और अपने उदीप्त प्रेम की बात करता है, फिर उसके परिवार की निम्नता के बाद भी विवाह के प्रस्ताव की उदारता दिखाता है तब लिज़ एक ठंढी साफगोई और चुभती हुई व्यंग्य कुशलता से उसे मना कर देती है |
अर्पणा दीप्ति
सोमवार, 9 सितंबर 2024
निर्मोही कृष्ण (जन्माष्टमी विशेष ) विलंब पोस्ट
हाथी घोड़ा पालकी जय कन्हैया लाल की | कान्हा आ रहें हैं , माता देवकी पुत्र बिछोह में रो रहीं हैं | पिता वसुदेव यमुना नदी से होकर अपने पुत्र को लेकर जा रहे हैं | सभी प्रतीक्षारत हैं कृष्ण आ रहें हैं |
यहाँ हमें यह भी याद रखना होगा कि कृष्ण याद रखना नहीं अपितु भूलना सिखाते हैं ,गोकुल को .. फिर मथुरा को..और अंत में द्वारिका को भी | ये सब तो मात्र पड़ाव है -कहते रहिए हम आप उन्हें निर्मोही लेकिन जब-जब दिखेगा उनका रत्नजड़ित मुकुट में मोर पंख तब-तब याद आएगा ब्रज का वनप्रान्त जो द्वारिकेश के यशस्वी भाल पर विराजमान है , कृष्ण बांधना नहीं छोड़ना सिखाते हैं | वह पलट कर नहीं आते न यशोदा और न राधा के पास , लेकिन जब-जब देखेंगे उस छलिया को नहीं दिखेगा प्रचंड रिपुरारि सुदर्शन चक्र , बस गूँजेगी मुरली की मीठी तान जो सदा उनके संग रही |
कृष्ण सिखाते हैं लेना , माखन .. गोपिकाओं का मन .. राधा का सर्वस्व .. मथुरा तो कभी द्वारिका |
पर अंत में छोड़ देते हैं सब, यहीं रह जाने के लिए अंत समय में निर्बाध एकांत में मर जाने को |
कृष्ण छोड़ते हैं रण .. कहलाते हैं रणछोड़ पर नहीं छोड़ते कर्ण की अनकही पीड़ा को.. भीष्म के कठोर तप को .. और गांधारी के शाप को |
सब जानते हैं कृष्ण करते हैं लीला , रचाते हैं रास , छुपाते हैं स्नान करती गोपिकाओं के वस्त्र |
पर कितने लोग जानते हैं उन एक हजार विवाहलीला के पीछे का सच |
कृष्ण नहीं है सत्यव्रत ---अर्धसत्य --- मिथ्यावचन बोलने के लिए उकसाते हैं ,लेकिन कब कहा उन्होंने अपने आप को सत्यवादी |
वे सत्य के नहीं मानव कल्याण के साथ रहे जो किसी भी सत्य या धर्मवाक्य से ऊपर हैं | वे जीवन के व्यवहारिक सत्य के साथ रहते हैं फिर चाहे वो द्रोपदी का हो या बर्बरीक का |
वस्तुत: कृष्ण याद को भूलना और पाए को छोड़ना सिखाते हैं |
वो हरबार एक नई व्याख्या से भ्रमित करते हैं , पर इस भ्रम के पार ही सत्य है , काले बादलों के पट में ढंके हरिणय सा सत्य |
ठीक उनके नीलाभ वर्ण की तरह , जिस से राधा रूपी स्वर्ण आभा का प्राकटय होता है----जो उनके मूल का सार सत्य है और अंतिम रूप से सिखाता है कि सबके अलग-अलग जीवन है ---जीवन सत्य है |
वस्तुत: अपनी समग्रता में कृष्ण 'भगवान की अवधारणा' को भूलने ---भक्ति का त्याग---लोक कल्याण को भजने और प्रेम को ध्यायने का पाठ है |
अर्पणा दीप्ति
सोमवार, 26 अगस्त 2024
अदहन के बहाने शब्दों की समृद्धि
अदहन;-बिहार के गाँव में भात-दाल जिस बर्तन में बनता है उसे बटुक या बटलोई कहा जाता है | पुराने जमाने में यह पीतल या कांसा का होता था , बाद में मिट्टी या अल्युमिनियम का बटुक प्रचलन में आया | आज भी बिहार के गांवों मे लकड़ी के चूल्हे पर चढ़ाकर इसमे भात-दाल पकाया जाता है | लकड़ी के जलावन के प्रयोग की वजह से पेंदी में कालिख लग जाती है जिसे कारिखा भी कहा जाता है | कारिखा से बचाव के लिए बर्तन की पेंदी में मिट्टी ( चिकनी मिट्टी जिसे गोरिया मिट्टी भी कहा जाता है) का लेबा लगाया जाता है | चिकनी मिट्टी का पिंडी बनाकर घर में पहले से रख लिया जाता है ताकि बाद मे दिक्कत न हो | मिट्टी का लेबा सूखने के बाद बटुक को चूल्हा पर चढ़ाया जाता है | लकड़ी की आग सुलगाई जाती है | चूल्हा से धुआँ निकलने के लिए खपटा या खपडा का उचकून लगाया जाता है | जलावन की लकड़ी जरना कहलाती है, सुखी होने पर यह खन -खन कर जलती है | महरायल जलावन से खाना बनाने में दिक्कत होती है धुआँ अधिक मात्रा मे निकलती है | बटुक या बटलोई में नाप कर अदहन का पानी डाला जाता है | अदहन का पानी जब खूब गरम हो जाए या खौलने लग जाए तब इसमे चावल या दाल डाला जाए ऐसा कहा जाता है | अदहन की एक अलग ही आवाज होती है मानो कोई संगीत हो |घर की स्त्रियाँ अदहन नाद पर फुर्ती से चावल या दाल जो भी धुलकर रखा हो उसे बटुक मे दाल देती हैं इसे चावल या दाल मेराना कहते हैं | मेराने से पहले चावल या दाल के कुछ दाने जलते आग को अर्पित किया जाता है | मेराने से पहले चावल को धोकर उस पानी को गाय भैंस के पीने के लिए रखा जाता है इस पानी को चरधोइन कहा जाता है | मेराने के बाद सम आंच पर चावल को पकाया जाता है | बीच-बीच मे इसे कलछुल से चलाया जाता है ताकि एकरस पके | चावल जब डभकने लगता है तब उसे पसाया जाता है जिसे माड़ निकालना कहते हैं | साफ बर्तन यानि की कठौता या बरगुना में माड़ पसाया जाता है | गरम माड़ पीने या माड़ -भात खाने में जो आनाद मिलता है उसे लिखकर नहीं समझाया जा सकता है | सामान्यतया यह गरीबों का भोजन है परंतु जिसने इसे खाया उसे पता है कि असली अन्नपूर्णा का आशीर्वाद क्या है ? भात पसाने के लिए बटलोई पर काठ की ढकनी डाली जाती है | भात पसाना भी एक कला है, नौसिखिये तो अपना हाथ-पैर ही जला बैठते है | ढकनी को एक साफ सूती कपड़ा से पकड़ कर माड़ पसाया जाता है | यह साफ सूती कपड़ा भतपसौना है | भोजन जब पक जाए तब भात-दाल और तीमन (तरकारी) मिलाकर अग्निदेवता को पहले जीमाया जाता है उसके बाद घर के बाँकी कुटुंब जीमते हैं | जीमने हेतु चौका पुराया जाता है , गोरिया मिट्टी से एक पोतन से लीप कर चौका लगाया जाता है | इस चौके के आसान पर बैठ माँ -दादी बड़े ही मुनहार से खिलाती हैं उसका आनंद अलौकिक है |
अर्पणा दीप्ति
रविवार, 19 जून 2022
प्रतिभाशाली स्त्रियाँ
आसान नहीं होता
प्रतिभाशाली स्त्री से प्रेम करना ,
क्योंकि उसे पसंद नहीं होती जी हुजूरी |
झुकती नहीं वो कभी ,
जब तक रिश्तों मे न हो मजबूरी |
तुम्हारी हर हाँ मे हाँ और ना में ना कहना ,
वो नही जानती !
क्योंकि उसने सीखा ही नहीं,
झूठ की डोर मे रिश्तों को बांधना ,
वो नहीं जानती स्वाद की चाशनी में डुबोकर अपनी बात मनवाना ,
वो तो जानती है बेबाकी से सच बोल जाना |
फिजूल की बहस में पड़ना
उसकी आदत मे शुमार नहीं ,
लेकिन वो जानती है ,
तर्क के साथ अपनी बात रखना |
वो क्षण-क्षण गहने -कपड़ों की मांग नहीं किया करती
वो तो संवारती है स्वयं को अपने आत्मविश्वास से,
निखारती है अपना व्यक्तित्व मासूमियत भरे मुस्कान से |
तुम्हारी गलतियों पर तुम्हें टोकती है ;
तो तुम्हारे तकलीफ मे वो तुम्हें संभालती भी है |
उसे घर संभालना बखूबी आता है ;
तो अपने सपनों को पूरा करना भी |
अगर नहीं आता तो किसी के अनर्गल बातों को मान लेना |
पौरुष के आगे वो नतमस्तक नहीं होती ,
झुकती है तो तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम के आगे ,
और इस प्रेम के खातिर वो अपना सर्वस्व न्योछावर कर देती है |
हौसला हो निभाने का तभी ऐसी स्त्री से प्रेम करना ,
क्योंकि टूट जाती है वो धोखे से,
छलावे से,पुरुष के अहंकार से |
फिर नहीं जुड़ पाती है किसी प्रेम की खातिर |
(पोलेंड की प्रसिद्ध कवियत्री "डोमिनेर" की कविता का हिन्दी अनुवाद )
गणपति का आगमन
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अर्पणा दीप्ति यथार्थ मानव जीवन की सच्ची अनुभूति है जिसके द्वारा हम अपने जीवन में घटित होने वाले घटनाओं एवं भावनाओं का अनुभव करते हैं।...